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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
बहुत थोड़े ही समयमें ऐसा फार्म अनाज, पशुओंका चारा, फल या कुछ किस्मोंकी सब्जियोंकी आश्चर्यजनक पैदावार देनेवाला फार्म बन जायेगा और पैदावारकी वे सारी चीजें उसी बस्तीमें बेची जा सकेंगी। ऐसा होनेपर बाजारमें माल लाने ले जानेका खर्च बचाया जा सकेगा और इससे शहर या जिलेके समूचे भंगी-वर्गकी शिक्षा या बेहतरीकी योजनाको और आगे बढ़ानेके लिए खासा अच्छा मुनाफा भी हो जायेगा । पाखानेका ऐसा उपयोग करना एक ऐसी बहुत मूल्यवान खाद सामग्रीको बेहद बचत करना है, जिसकी न केवल अब अत्यधिक आवश्यकता है बल्कि मेरा विश्वास है कि जो मक्खियोंको पैदा करके और सभी तरहके कीटाणुओं और गन्दगीको फैलाकर बीमारी और उसके फलस्वरूप सारे देशकी आर्थिक क्षतिका कारण बनी हुई है।
श्री ग्रेग आगे लिखते हैं :[१]

[ अंग्रेजीसे ] यंग इंडिया, ९-६-१९२७

४७५. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

कुमार पार्क
बंगलोर
९ जून, १९२७

भाई घनश्यामदासजी,

आपके बम्बईसे रवाना हो जानेके बादसे आपको यह चौथा पत्र में लिख रहा हूँ । जमनालालजीने मुझे आपका समुद्री तार भेजा है। इसलिए यह पत्र अंग्रेजीमें लिख रहा हूँ। मुझे अभी स्वयं पत्र लिखनेकी कोशिश नहीं करनी चाहिए। इसलिए मैं अपनी शक्ति बरकरार रखने के लिए अपने अधिकांश पत्रोंको, चाहे वे अंग्रेजी या हिन्दी या गुजरातीमें हों, बोलकर लिखवाता हूँ ।

आज मालवीयजी मेरे पास हैं। वह अपना स्वास्थ्य सुधारने ऊटी जा रहे हैं। वह आज सुबह ही आये थे और उन्हें आज शामको चले जाना था। परन्तु जब मैंने उन्हें बताया कि परसों मैसूरके महाराजाका जन्मदिन है और उन्हें यह सुझाव दिया कि ऊटीके लिए रवाना होने से पहले महाराजाको आशीर्वाद देने उन्हें मैसूर जाना चाहिए तो उन्होंने दीवानको तार भेजा है। उन्होंने आगेकी यात्राका कार्यक्रम मुल्तवी कर दिया है और शायद वे कल मैसूर जायेंगे। निश्चय ही मैं बराबर उनसे पत्र-व्यवहार करता रहा हूँ। और वे तार द्वारा उत्तर देते रहे हैं। वे बड़े कमजोर दिखाई दे

रहे हैं परन्तु सभी बातोंके प्रति सदाकी तरह आशावान हैं। उनके शरीरमें कोई रोग

  1. श्री ग्रेगके पत्रका शेषांश नहीं दिया जा रहा है ।