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पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

नहीं है। यह केवल लगातार थकावट एवं परिश्रमके कारण उत्पन्न हुई कमजोरी है। उन्होंने वायदा किया है कि वे ऊटीमें लगभग एक महीना विश्राम करेंगे । डा० मंगलसिंह उनके साथ हैं और एक रसोइया तो है ही। गोविन्द बम्बई तक उनके साथ थे । परन्तु चूँकि वे अपने 'क्रो केस' की तारीख नहीं बढ़वा सके, इसलिए उन्हें इलाहाबाद जाना पड़ा।

मुझे नहीं मालूम कि क्या मैंने आपको यह सुझाव दिया था कि आप कु० म्यूरियल लेस्टरसे मिलें, जो लन्दनकी गन्दी बस्तियोंमें काम कर रही हैं। वे पिछले साल कुछ समयके लिए भारतमें थीं। वे एक महीना आश्रममें रहीं। वे अत्यन्त उत्साही एवं योग्य कार्यकत्री हैं। वे पूर्ण मद्यनिषेधके हितार्थ काम कर रही हैं और इसके लिए वहाँ जनमत जागृति कर रही हैं। उनका पता है : कु० म्यूरियल लेस्टर, किंगस्ले हॉल, पॉविस रोड, बो ई० ३।

मुझे आशा है कि आपके स्वास्थ्यमें सुधार हुआ होगा और लालाजीका स्वास्थ्य भी अच्छा होगा। मैं पिछले रविवारको नन्दीसे नीचे उतर आया था। मेरे स्वास्थ्यकी प्रगति ठीक चल रही है। यहाँ डाक्टरोंकी राय है कि मैं अगले महीने थोड़ा बहुत सफर करने लायक हो जाऊँगा ।

आपका,
मोहनदास

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ७८७७) से ।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

४७६. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

कुमार पार्क
बंगलोर
९ जून, १९२७

प्रिय सतीश बाबू,

आपका पत्र मिला। मैं तो यह सुझाव देना चाहूँगा कि 'यंग इंडिया' में जैसा परिवर्तन करनेकी घोषणा है, आप व्यवस्थामें वैसा कोई बदलाव न करें। बेचारा शंकरलाल ! वह आपके पत्रसे इतना घबरा गया कि उसने हर मामलेको मेरे पास विचारार्थ भेजना शुरू कर दिया। मैंने उसे सान्त्वना दी है और उसको बताया है कि उसे ऐसा करनेकी जरूरत नहीं है और यह भी कि हर हालतमें उसे पहले तो जमनालालजीसे सलाह लेनी चाहिए और उनकी राय ले लेनेके बाद मामलेको मेरे पास विचारार्थ भेजा जा सकता है, ताकि मुझे मामलेकी सारी बारीकियोंपर विचार न करना पड़े। मैं अब उसके पत्रका इन्तजार कर रहा हूँ। लेकिन मैं जानता हूँ कि यदि उसे आपका इस आशयका पत्र मिले कि कौंसिलकी अगली बैठक होनेतक आप इसी व्यवस्थाका अनुमोदन करते हैं तो उसे अधिक तसल्ली हो जायेगी ।