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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

बेगुसराय में इसकी अवनति हुई है। उन्होंने कहा इसका कारण केवल यही हो सकता है कि या तो कार्यकर्त्ताओंका चरखेपरसे विश्वास उठ गया है या उन्होंने इसके लिए काम करना छोड़ दिया है। उन्होंने कार्यकर्त्ताओंसे अपील की कि वे अपने समयका कुछ भाग कमसे-कम खद्दरके काममें भी लगायें।

गोशालाका जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस गोशाला में चालीस वर्षोंकी लम्बी अवधि में जितना काम हुआ है, उससे काफी अधिक काम होना चाहिये था। परन्तु यह बात नहीं कि केवल बेगुसरायकी गोशालामें ही ये त्रुटियाँ हैं। भारतकी प्रायः सभी गोशालाएँ लगभग गलत पद्धतियोंपर चलाई जा रही हैं। गोशालाओंका सर्वोत्तम उपयोग हो सकनेके लिए उन्हें उपयुक्त वैज्ञानिक पद्धतिपर चलाया जाना चाहिए। उन्होंने बादमें गोरक्षाके आर्थिक और धार्मिक पहलुओंको विस्तारपूर्वक समझाया और कहा कि कोई कारण नहीं कि गोरक्षा हिन्दुओं एवं मुसलमानोंके बीच संघर्षका विषय बने। उन्होंने इस बातपर बल दिया कि प्रत्येक गोशालाके साथ डेरीफार्म और चर्मालय लगे होने चाहिए और उनसे होनेवाली आमदनी पशुओंके कल्याणके लिए खर्च की जानी चाहिए। उन्होंने इस बातपर दुःख प्रकट किया कि जो लोग गोरक्षाको धार्मिक कर्त्तव्य नहीं मानते, या गायको पूज्य नहीं मानते, वे भी गायपर गायकी पूजा करनेवाले हिन्दुओंसे अधिक ध्यान देते हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दुओं की गोरक्षाके प्रति उदासीनता ही भारतकी गौओंकी दुर्दशाका एकमात्र कारण है और गौओंकी दशा सुधारनेके लिए हिन्दुओंको अपने कर्तव्यका पूरा ध्यान होना चाहिए।

भाषण समाप्त करते हुए गांधीजीने एक बार फिर धनके लिए अपील की और इस बातपर दुःख प्रकट किया कि सभामें बिक्रीके लिए खद्दर नहीं रखा गया है। उन्होंने श्रोताओंसे अनुरोध किया कि वे अभी भाग कर शहरमें खद्दरकी दुकानपर जायें और शुद्ध खादीके कपड़े पहनें।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट ४-२-१९२७