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२०. भाषण: जमुईमें

२७ जनवरी, १९२७

महात्माजीने थैली भेंट करनेके लिए अखिल भारतीय चरखा संघकी ओरसे लोगोंको धन्यवाद दिया और कहा कि यह पैसा अखिल भारतीय देशबन्धु स्मारक कोषके हिसाब में जमा कर दिया जायेगा। उन्होंने उन परिस्थितियोंका हवाला दिया, जिनमें इस कोषको आरम्भ किया गया था और कहा कि इस कोषको उस उद्देश्यको पूर्ति के लिए काममें लाया जायेगा जो मृत्युके समय देशबन्धुके हृदयको सबसे ज्यादा प्रिय था और वह है—खद्दरका काम। उन्होंने कहा कि कोबके लिए धन-संग्रहका कार्य एक वर्धके लिए बन्द कर दिया गया था, क्योंकि मैंने एक वर्षतक दौरा न करनेकी प्रतिज्ञा ली थी। परन्तु अब मेरी प्रतिज्ञाकी अवधि पूरी हो चुकी है। मुझे आशा है कि मैं कोबके लिए धन-संग्रहकी दृष्टिसे सारे देशका दौरा करूँगा।

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि यदि आप देहातोंकी उन्नति चाहते हैं, यदि आप गरीबों की सहायता करना चाहते हैं, यदि आप ग्रामवासियोंसे अपना शुद्ध सम्बन्ध चाहते हैं तो आप उसके लिए केवल एक ही रास्ता अपना सकते हैं—और वह है चरखा। आपने चिरकालतक गरीबोंकी उपेक्षा करके पाप किया है। आप गरीब खेतिहरों की मेहनत की कमाईपर निर्वाह करते रहे हैं। आपने उनका वैसा ही शोषण किया है जैसा यूरोप एशियाका शोषण कर रहा है। पापोंके दण्डस्वरूप आप लोग इस वर्तमान दुर्दशाको प्राप्त हुए हैं। आपको प्रायश्चित्त करके इन सब पापोंका निराकरण करना चाहिए और इसके लिए उन लोगों की सेवा करनी चाहिए, जो इतने समयसे आपकी सेवा करते आये हैं। यह सब कैसे सम्भव होगा। उन्होंने कहा कि सब लोगोंके लिए गाँवों में जाना और व्यक्तिगत रूपमें मजदूरों और खेतिहरोंकी सेवा करना सम्भव नहीं है। परन्तु आप किसी रूपमें उन्हें आर्थिक सहायता पहुँचा कर उनकी सेवा कर सकते हैं और यह सेवा उन्हें काम देकर की जा सकती है।

भाषण जारी रखते हुए उन्होंने कहा कि केवल कताई ही एक ऐसा उद्योग है जो प्रत्येक कुटीरमें पनप सकता है। इस काममें बड़े-छोटे, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष, पढ़े-बेपढ़े सभी लोग भाग ले सकते हैं। उन्होंने कहा कि चरखपर काम करना महायज्ञ है। उन्होंने सबको इसमें भाग लेनेके लिए आमन्त्रित किया। उन्होंने श्रोताओंसे आग्रह किया कि खद्दरको सभी किस्मके कपड़ोंपर तरजीह देते हुए प्रयोग में लायें। उन्होंने कहा कि खादी पहनने के विरोध में यह निराधार तर्क दिया जा सकता है कि वह खुरदरी और मँहगी होती है। परन्तु क्या आप इसलिए कि आपकी माताका दिया भोजन अपेक्षतः घटिया किस्मका है उसे अस्वीकार कर घर-घर अच्छा खाना माँगते