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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

फिरेंगे। खद्दर धीरे-धीरे अधिक बढ़िया और अधिक सस्ता बनता जा रहा है। यदि आप इसे पर्याप्त संरक्षण दें, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यह और भी बढ़िया और सस्ता हो जायेगा। उन्होंने कहा, इस समय खद्दर पहनने में कितना ही त्याग क्यों न करना पड़े, अपने पिछले पापोंका प्रायश्चित्त करनेके लिए उसे पहनना ही चाहिए।

आगे बोलते हुए उन्होंने कहा कि अस्पृश्यता हिन्दूसमाज-व्यवस्थापर कलंक है। हिन्दू यदि जातिके रूपमें जीवित रहना चाहते हैं, तो उन्हें जितनी जल्दी हो सके यह कलंक मिटा देना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिस रूपमें छुआछूतका आज प्रचलन है, उसका शिक्षण न तो मनुने दिया है और न उपनिषदोंने हो। उन्होंने हिन्दुओंसे स्वामी श्रद्धानन्दके नामपर अपील की कि वे इस विनाशकारी परम्पराको समाप्त कर दें। उन्होंने आशा प्रकट की कि हिन्दू और मुसलमान दोनों ही कायरताको छोड़ कर, यथासम्भव हर तरीकेसे अपने आपको स्वराज्यके लिए तैयार करके, उस महान संन्यासीकी हत्यासे सबक लेकर अच्छे कामोंमें जुट जायेंगे।

भाषण समाप्त करते हुए उन्होंने कहा कि जो थैली मुझे भेंट की गई है, उसमें सभामें उपस्थित सभी लोगोंका दान शामिल नहीं हुआ है। उन्होंने अपील की कि जिन्होंने पहलेसे कुछ नहीं दे रखा है, वे शक्ति-भर खादीकार्यके इस कोषमें अपना हिस्सा दें और इस प्रकार महान देशबन्धुकी स्मृतिका समादर करें। उन्होंने श्रोताओंसे प्रार्थना की कि वे सभामें भी बिक्रीके लिए रखा गया खद्दर खरीदें।

[अंग्रेजीसे]
सर्चलाइट, ४-२-१९२७
 

२१. सम्मति: वनिता विश्राम, शाहबादकी दर्शक पुस्तिकामें

पौष कृष्ण १०, १९८३ [२८ जनवरी १९२७]

इस वनिता विश्राम[को] देखकर मुझे जितना आनंद हुआ इतना हि दुःख हुआ। दाताके लीये मनमें आदर पैदा हुआ और मकानकी शांति इत्यादि देखकर आनंद हुआ परंतु सात वर्षकी विधवाको देखकर मुझे दुःख हुआ। संचालकोंसे मेरी प्रार्थना है कि ऐसी बालाओंको वे विधवा न समझें। ऐसा समझने में धर्म नहि परंतु अधर्म है। ऐसी बालिका कुमारिका मानी जायं।

मोहनदास करमचंद गांधी

मूल (जी० एन० ८०४४) की फोटो नकलसे।