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२२. दीक्षांत भाषण: बिहार विद्यापीठ, पटनामें [१]

३० जनवरी, १९२७

गांधीजीने भाषणके आरंभ में आशा व्यक्तकी कि स्नातकोंने आज यथाविधि जो पवित्र संकल्प किये हैं वे उनका जीवनमें पालन करेंगे और कहा: मैंने यही बात गुजरात विद्यापीठके दीक्षांत समारोहमें कही थी कि यदि विद्यापीठ द्वारा एक भी आदर्श विद्यार्थी और आदर्श अध्यापक प्रस्तुत हो सके तो उसे अपने अस्तित्वको सार्थकता सिद्ध करनेके लिए इससे अधिक कुछ करनेकी आवश्यकता नहीं है। क्योंकि इन संस्थाओंका प्रयोजन क्या है? मणियोंकी खोज! इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता कि मणियाँ कम हैं या ज्यादा। अवश्य ही वे ‘निर्मलतम एवं सौम्य प्रकाश फैलानेवाले’ [२] हों। आगे बोलते हुए गांधीजीने दक्षिण आफ्रिकाके संस्मरण सुनाये:

मैं दक्षिण आफ्रिकामें बीस वर्ष रहा। लेकिन मेरे मनमें हीरेकी खानें देखनेका विचार कभी नहीं आया। इसका एक कारण तो यह था कि मुझे आशंका थी कि शायद एक ‘अछूत’ को वहाँ प्रवेश न करने दिया जाए और उसका अपमान किया जाए। परन्तु जब गोखले वहाँ थे, तब मैंने इसे अपना कर्त्तव्य समझा कि वहाँका मुख्य उद्योग उन्हें दिखाया जाए। उनका अपमान होनेकी आशंका नहीं थी। इसलिए हम वहाँकी सबसे बड़ी खान देखने गये। वहाँ हमने जो दृश्य देखे उन्हें में अभी भूला नहीं हूँ। खोदी हुई मिट्टी एवं पत्थरोंके पहाड़ों जैसे कितने ही ढेर तो थे परन्तु हीरा एक भी नहीं। जब लाखों टन मिट्टी और पत्थर खोदते हुए कई लाख लोग भूगर्भमें समा जाते थे तब कहीं मुट्ठीभर कीमती पत्थर मिल पाते थे। जब कुल्लिनानने, जो इस हीरेकी खानका स्वामी था, वर्षोंकी मेहनत और लाखों पौंड खर्च करनेके बाद एक पत्थर पाया, जो जारके मुकुटकी शोभा बढ़ानेवाले हीरे एवं कोहनूर हीरेसे बड़ा था, और जब उसका नामकरण स्वामीके नामपर किया गया, तब आप उसके हर्षकी कल्पना कर सकते हैं। उसे लगा कि उसके जीवनका उद्देश्य पूरा हो गया हैं। यदि हम किसी ऐसी वस्तुपर जिसका महत्त्व केवल कृत्रिम है, चाहे जितना श्रम और धन लगाने में संकोच नहीं करते तो मानवीय खानसे हीरे निकालनेमें हमें कितना खर्च करना चाहिए? हमें इसी भावनासे शिक्षणका काम जारी रखना चाहिए।

हीरेकी यह उपमा उपयुक्त है। यह रस्किन द्वारा ‘आत्माओंका निर्माण’ वाक्यांशमें प्रयुक्त उपमासे अधिक उपयुक्त है। वह निर्माण केवल ईश्वरके हाथमें है। हम मरणधर्मा मनुष्योंको ईश्वरने हमारे भीतर जो कुछ पहले ही से छिपाकर रखा है, उसकी खोज भर करनी है।

  1. महादेव देसाईंकी “साप्ताहिक चिट्ठी” से।
  2. ऑफ दि प्योरेस्ट रे सिरीन” ग्रे का प्रसिद्ध वाक्यांश।