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दीक्षांत भाषण: बिहार विद्यापीठ, पटनामें

  बुरा न कहें। शिक्षाका माध्यम अंग्रेजी होनेके कारण हम सारी मौलिकता खो बैठे हैं। हमारी स्थिति बिना पंखोंके पक्षियों जैसी है। हमारी उच्चतम अभिलाषा यह रहती है कि हम कहीं क्लर्क या सम्पादक बन जायें। वर्तमान शिक्षा-पद्धतिमें हममेंसे कोई एक भलेही लॉर्ड सिन्हा बन जाये परन्तु हममेंसे प्रत्येकको बहुत हुआ तो भारी भरकम विदेशी शासनतन्त्रका एक पुर्जा बनानेके लिए ही तैयार किया जा रहा है। मुजफ्फरपुरमें एक लड़का मेरे पास आया और पूछने लगा——क्या मैं राष्ट्रीय पाठशालामें जाकर किसी दिन लाट साहब बन सकता हूँ? मैंने कहा नहीं, तुम अपने गाँवके लाट साहब बन सकते हो; लॉर्ड सिन्हा नहीं बन सकते। यह तो केवल लॉर्ड बर्कनहेडके हाथकी बात है।

लोगोंके मनपर गरीबोंके पैसेसे अधिकाधिक संख्यामें महलों जैसे शिक्षा भवन बनानेकी जो सनक सवार है, गांधीजीने उस बातका उल्लेख किया और कहा कि ये भवन ऐसी शिक्षा देनेके लिए बनाये जा रहे हैं, जिससे गरीबोंको वंचित रखा जाता है।

मुझे एक बार इलाहाबादमें अर्थशास्त्र प्रतिष्ठान (इकोनोमिक इंस्टीट्यूट) देखनेका मौका मिला। प्रो॰ जेवन्सने मुझे यह भवन दिखाया (यदि मुझे ठीक याद है) और जैसे ही उन्होंने यह कहा कि इसके बनानेमें ३० लाख रुपये लगे हैं; वैसे ही मैं काँप उठा। लाखोंको भूखों मारे बिना आप ऐसे महल नहीं बना सकते। नई दिल्लीको देखें, वह भी यही कहानी सुनाती है। रेलोंके प्रथम और द्वितीय श्रेणीके डिब्बोंमें जो शानदार सुधार हो रहे हैं, उन्हें देखिये। पूरी प्रवृत्ति विशेषाधिकार प्राप्त बहुत थोड़े लोगोंके बारेमें सोचने एवं गरीबोंकी उपेक्षा करनेकी है। यदि यह शैतानका कार्य नहीं तो क्या है? यदि मुझे सत्य कहना ही है, तो मैं इससे कम कुछ नहीं कह सकता। मुझे उनपर कोई रोष नहीं, जिन्होंने इस पद्धतिको जन्म दिया है। वे इसके अलावा और कुछ कर ही नहीं सकते थे। एक हाथी चींटीके बारेमें कैसे सोच सकता है? जैसे कि सर लैपेल ग्रिफिनने दक्षिण आफ्रिकी प्रतिनिधि मंडलके सदस्यके रूपमें भाषण देते हुए कहा था "जिसपर पड़ती है, केवल वही जानता है।"[१]हमारे हर मामलेका प्रबन्ध उनके हाथोंमें है और संसारमें अच्छीसे-अच्छी नीयत रहनेपर भी उनमेंसे अच्छेसे-अच्छा व्यक्ति भी हमारे विषयमें इतना अच्छा प्रबन्ध नहीं कर सकता, जितना हम स्वयं कर सकते हैं, क्योंकि उनकी विचारधारा हमारी विचारधारासे नितान्त भिन्न है। वे विशेषाधिकार प्राप्त थोड़ेसे लोगोंके सम्बन्धमें सोचते हैं। हमें लाखों करोड़ोंके विषयमें सोचना है...।

स्नातक डिग्रियाँ ले लें, जो चाहें सीख लें, परन्तु उनका सारा ज्ञान चरखेपर केन्द्रित हो। उनका अर्थशास्त्र और उनका विज्ञान चरखेका उद्देश्य पूर्ण करनेमें सहायक हो। चरखेको ताकपर उठा कर न रख दें। चरखा हमारी गतिविधियोंके सौर-मण्डलका सूर्य है। इसके बिना हमारे विद्यापीठ केवल नामके विद्यापीठ हैं। लॉर्ड इर्विनने ऐसा कहते समय

  1. देखिए खण्ड ६, पृष्ठ १२२।