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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मानो वेदवाक्य ही कहा कि हमें कौंसिलों द्वारा किसी भी प्रकारकी प्रगतिके लिए ब्रिटिश संसदकी ओर देखना चाहिए। हमें उनके प्रति रोष नहीं करना चाहिए। वह केवल संसद ही की बात सोच सकते हैं। उनके सौर-मंडलका सूर्य लंदन है, हमारे सौर-मंडलका है चरखा। हो सकता है, मैं इस सम्बन्धमें गलतीपर होऊँ; परन्तु जबतक इसे गलत सिद्ध करके नहीं दिखाया जाता, मैं इस विश्वासको सँजोकर रखूँगा। चरखा किसी भी दशामें किसी भी व्यक्तिको हानि नहीं पहुँचा सकता और इसके बिना हम, और यदि मैं कहूँ, तो यह भी कह सकता हूँ कि संसार भी नष्ट हो जायेगा। हम जानते हैं कि युद्धके दौरान असत्यका श्रेष्ठ धर्मके रूपमें प्रचार किया जाता था। उसके बादसे यूरोपको कैसे-कैसे अनुभव हो रहे हैं। संसार युद्धके परिणामोंसे थक चुका है। जैसे चरखा आज भारतको शांति दे सकता है, सम्भव वह कल संसारको शांति दे सके, क्योंकि चरखेका उद्देश्य यह नहीं है कि अधिकतम संख्यामें लोगोंकी भलाई हो, अपितु यह है कि सबकी भलाई हो। जब कभी मैं किसी व्यक्तिको गलती करते देखता हूँ, मैं अपने मनमें कहता हूँ, गलती मैंने भी की है। जब मैं किसी विषयासक्त व्यक्तिको देखता हूँ, मैं सोचता हूँ कि मैं भी कभी ऐसा ही था। इस तरह मैं संसारमें हर व्यक्तिके साथ अपना नाता महसूस करता हूँ और मुझे लगता है कि जबतक हममें से मामूलीसे-मामूली व्यक्ति भी सुखी नहीं हो जाता मैं सुखी नहीं हो सकता। मैं चाहता हूँ कि आप इसी प्रयोजनके लिए चरखेको अपने अध्ययनका केन्द्र बनायें। जैसे प्रह्लादको सब जगह राम ही दिखाई देते थे और तुलसीदासको कृष्णकी मूर्तिमें भी राम ही दिखाई दिये, उसी तरह आप अपने सारे अध्ययनको चरखेकी सम्भावनाएँ समझनेमें लगायें। हमारा विज्ञान, हमारी बढ़ईगीरी, हमारा अर्थशास्त्र इन सबको इस तरह प्रयोगमें लाया जाये कि चरखा हमारे गरीबसे-गरीब लोगोंके लिए मुख्य आधार और स्तम्भ बन जाये। मैं जानता हूँ कि हम गुजरात विद्यापीठमें यह सब नहीं कर सके हैं, आप भी यह कुछ नहीं कर रहे हैं। मैं यह बात शिकायतकी भावनासे नहीं कह रहा हूँ। मैं केवल अपने हृदयकी पीड़ा बाहर उँडेल रहा हूँ, ताकि आप इस पीड़ाको समझ सकें।

भाषणके शेष अंशमें विद्यापीठकी सहायताके लिए अपील की गई। उसकी सभी उपस्थित जनोंपर बड़ी अच्छी प्रतिक्रिया हुई। २,००० रुपये देनेका वायदा किया गया और ६०० से ऊपर रुपये उसी जगह इकट्ठे किये गये।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, १०-२-१९२७