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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

  लाना चाहता हूँ। अर्थशास्त्रियोंका कहना है कि मैं असम्भव कार्य करना चाहता हूँ। कुछ लोग मजाकके रूपमें टीका-टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि जब मेरा देहान्त होगा तो मेरे मृत शरीरको जलानेके लिए लकड़ीकी कोई कमी नहीं पड़ेगी, क्योंकि मैंने चरखे बनवा रखे हैं; इस रूपमें मानो मैंने लकड़ीकी पर्याप्त व्यवस्था पहलेसे ही कर ली है। कुछ भी हो यह तथ्य है कि मिल-उद्योगमें गरीब मजदूरोंको एक रुपया उत्पादन मूल्यकी वस्तुमें कठिनाईसे एक पैसा मिलता है——रुपयेपर एक आना भी उन्हें कभी नहीं मिलता। महात्माजीने आगे बोलते हुए कुछ आँकड़ोंका हवाला देते हुए लोगोंकी आर्थिक स्थितिका विस्तारसे विवरण दिया। उन्होंने लोगों की आमदनीके दादाभाई नौरोजी, लॉर्ड कर्जन और आर॰ सी॰ दत्त द्वारा तैयार किये गये अनुमानको सामने रखा और कहा:

भारतकी प्रति व्यक्ति आमदनीको बताने वाले छोटेसे निशानकी तुलनामें यह लम्बी लाल पट्टी[१] देखिए जो अमेरिकाकी प्रति-व्यक्ति आमदनीको बता रही है। वहाँ एक व्यक्तिकी प्रतिदिनकी आमदनी १४ रुपयेसे ऊपर है और यहाँ प्रतिदिन १॥ आना है। अन्य देशोंकी आमदनीकी तुलना कीजिए क्रमश: इंग्लैंड, फ्रांस, जापानकी प्रतिदिनकी आमदनी ७, ६, और ५ रुपये है और यहाँ प्रतिदिन १॥ आना औसत आमदनी है। यदि आप वेतन पानेवाले मन्त्रियों, कार्यकारी पार्षदों और कुछ एक वकीलों तथा उनसे कुछ कम लखपतियोंकी आमदनीको इस हिसाबसे अलग कर दें तो हमारे बहुसंख्यक गरीब लोगोंकी आमदनी इससे भी कम होगी। मैं आपसे बड़ी विनम्रतासे पूछता हूँ कि आप कोई उपाय बतायें जिससे इस स्वल्प आमदनीको बढ़ाया जा सके। मैं सभीसे यह पूछता रहा हूँ परन्तु कोई लाभ नहीं हुआ। गहन चिन्तन एवं हालके वर्षोंके दौरान लाखों लोगोंसे सजीव सम्पर्कके परिणामस्वरूप मैंने यह सुझाव दिया है कि इस आमदनी को बढ़ानेके लिए केवल चरखेको ही साधनके रूपमें अपनाया जा सकता है।

इस[२] उत्पादनका अर्थ है ३०,००० रुपयोंका बिहारकी ३,००० गरीब महिलाओंमें वितरण। मेरे साथ दरभंगाके खादी केन्द्रोंमें आइये और देखिये कि वहाँकी हिन्दू एवं मुसलमान महिलाओंको चरखेने कितना उल्लास और कितनी प्रसन्नता दी है। यदि मैं इससे अधिक महिलाओंको काम नहीं दे सकता, तो यह मेरा नहीं, आपका दोष है। यदि आप उनके हाथों द्वारा बनाई गई वस्तुएँ खरीदनेकी चिन्ता नहीं करते, तो काम आगे नहीं बढ़ सकता। आपके द्वारा प्रत्येक गज खद्दर खरीदनेका मतलब उन महिलाओंके हाथमें कुछ पैसे रखना होगा। वे कुछ-एक पैसे ही होंगे, अधिक नहीं। परन्तु जहाँ पहले एक पैसेकी भी कमाई नहीं थी, वहाँ कुछ पैसोंका भी महत्त्व होगा। मैंने राजमहेन्द्र और बारीसालमें[३] पतित महिलाओंको देखा था। एक जवान

  1. पटना विद्यापीठके विद्यार्थियों द्वारा विभिन्न देशोंकी प्रति-व्यक्ति आय दर्शानेवाली तालिका।
  2. यहाँ गांधीजीका इशारा खादीकी उत्पादन और बिक्री तालिकाकी ओर है।
  3. देखिए खण्ड २२, पृष्ठ ९३-९६।