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भाषण: पटनामें, खादी प्रदर्शनीके उद्घाटनपर

  लड़कीने मुझसे पूछा आपका चरखा हमें क्या दे सकता है?" उसने कहा, "जो आदमी हमारे पास आते हैं उनसे हमें कुछ-एक मिनटोंके ५ या १० रुपये मिल जाते हैं।" मैंने उसे बताया कि चरखेसे आपको उतना तो नहीं मिल सकता; परन्तु यदि आप लज्जास्पद जीवन जीना छोड़ दें, तो मैं आपको कातना और बुनना सिखानेका प्रबन्ध कर सकता हूँ और इनसे आपको समुचित जीविका कमानेमें सहायता मिल सकती है। उस लड़कीकी बात सुनकर मेरा दिल अन्दर ही अन्दर बैठ गया और मैंने ईश्वरसे पूछा कि मेरा भी जन्म स्त्रीके रूपमें क्यों नहीं हुआ। मेरा जन्म स्त्रीके रूपमें न होनेपर भी मैं स्त्री बन सकता हूँ और भारतकी उन स्त्रियोंके लिए ही, जिनमें अधिकांशको प्रतिदिन एक आना भी नहीं मिलता, मैं चरखा एवं अपना भिक्षापात्र लिये हुए देशभरमें चक्कर काट रहा हूँ।[१]

मैं आपसे यह विनती उन बहनोंके लिए करता हूँ। मैं सरकारसे विनती करनेमें भी कोई शर्म नहीं मानता। मैं खादी और चरखेके कार्यक्रमके लिए वाइसराय और मन्त्रियोंका सहयोग चाहता हूँ। आप, आपको जो विभाग सौंपे गये हैं उनसे मुझे पैसा दीजिए। अपने कर्मचमरियोंको खादी पहनाइये। अपने स्कूलोंमें चरखे शुरू करवाइए। अपने आप खादी पहनिए।

उन्होंने कहा कि देशका यह मेरा तीसरा दौरा है। मेरा यह विचार है कि शिक्षित बिहारियोंमें से कुछ ही लोग प्रान्तके गाँवोंमें रहनेवाले गरीब लोगोंके उतने निकट सम्पर्कमें आये हैं, जितना मैं स्वयं आया हूँ। उनकी दुर्दशाका व्यक्तिगत रूपसे अध्ययन करनेके बाद मैं इस निर्णयपर पहुँचा हूँ कि उनकी गरीबीको दूर करनेका एक-मात्र साधन चरखा है। कई लोगोंका कहना है कि असहयोग आन्दोलनके साथ खद्दर भी समाप्त हो गया है। परन्तु ऐसी बात नहीं है। इसके विपरीत खादीने बड़ी उन्नति की है। परन्तु मुझे उसकी प्रगतिसे सन्तोष नहीं है। करोड़ोंके लिए भोजन एवं कामकी व्यवस्था करना मेरा उद्देश्य है। परन्तु यह काम अभी लाखोंकी गिनतीतक भी नहीं पहुँचा है।...

मैंने खादीको सरकारी गैर-सरकारी और हिन्दू तथा मुसलमान दोनोंके लिए संयुक्त मंचके रूपमें पेश किया है। यदि हिन्दू यह सोचें कि इससे अधिकतर मुसलमानोंको लाभ होगा क्योंकि बुनकर [ज्यादातर] मुसलमान ही हैं या मुसलमान यह सोचें कि इसका लाभ हिन्दुओंको होगा क्योंकि अधिकतर हिन्दू महिलाएँ ही कताई करती हैं--तो इसमें मेरा कोई बस नहीं है। वास्तवमें इससे दोनों जातियोंको लाभ होगा, क्योंकि बुनकर और कतैये हिन्दू और मुसलमान दोनों हैं। लोगोंकी यह भी शिकायत है कि खादी खुरदरी और घटिया किस्मकी होती है। परन्तु मैं पूछता हूँ कि क्या आप माताकी बनाई हुई रोटीको इस कारणसे अस्वीकार कर देंगे कि दिल्लीके बढ़िया

  1. यह और इससे पिछला अनुच्छेद यंग इंडिया १०-२-१९२७ से और इससे आगेका एक अनुच्छेद नवजीवन ६-२-१९२७ से लिया गया है।