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पत्र: मीराबहनको

  मेरे खयालसे उपरोक्त प्रतिबन्धोंसे सारा काम चल जायेगा। इस मीयादको बढ़ाने न बढ़ानेके बारेमें जब हम मिलेंगे तब चर्चा करेंगे ही।[१]

जबतक तुम फुर्तीसे काम न कर सकने लायक मोटी न हो जाओ तबतक यह माननेका कोई कारण नहीं है कि तुम जरूरतसे ज्यादा मोटी हो। ऐसा होनेका कोई खतरा नहीं है। किसी भी सूरतमें, व्रतसे तो ऐसा कोई खतरा है ही नहीं।

मैंने तुम्हारी गुरुकुल-विरोधी रायको ध्यानमें रख लिया था; किन्तु मैंने उसके सम्बन्धमें कुछ कहना नहीं चाहा था। जो हमें पसन्द न हो ऐसी हर चीजकी आलोचनासे स्वतन्त्र निर्णय करने या उसे प्रकट करनेकी शक्ति मारी जाती है; खास तौरपर जब वह आलोचना प्रियजनोंकी तरफसे होती है। फिर भी मुझे खुशी है कि तुमने अपने-आप भूल सुधार ली है। इतनी ही बात है कि तुम्हें इन बातोंके बारेमें व्यर्थ परेशान नहीं होना चाहिए। आत्म-सुधारसे प्रफुल्लता आनी चाहिए।

अब इससे ज्यादा लिखना सम्भव नहीं है, क्योंकि मुझे तीन मील पैदल चलकर स्टेशन पहुँचना है। अब इतना ही वक्त है कि गाड़ी आरामसे पकड़ सकूँ।

बापू

सस्नेह,

[पुनश्च:]

यात्राके मुख्य स्थान ये हैं। एक दिनमें तीन-तीन जगह जाना है।

२ गोंदिया

३ वर्धा

४ वणी

५ यवतमाल, बरार

६-७ अकोला

दूसरे स्थानोंकी तारीखें अभी निश्चित नहीं हैं। हाँ, ७ के बाद मुझे मिल सकें, इसके लिए पत्र खादी भण्डार जलगाँव (जी॰ आई॰ पी॰ रेलवे) के पतेसे भेजे जाने चाहिए।

बापू

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५२०१) से।

सौजन्य: मीराबहन

  1. मीराबहनने अपनी पुस्तकमें इस सम्बन्धमें लिखा है, "जहाँतक मुझे याद है मैंने इस भोजन सम्बन्धी व्रतको बापूकी इजाजतसे एक सालतक जारी रखा था और उसके बाद मुझे सादे भोजनकी आदत ही हो गई थी।"