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२५. पत्र: आश्रमकी बहनोंको

सोमवार, पौष वदी १३ [३१ जनवरी, १९२७][१]

प्रिय बहनो,

फिर सोमवार आ पहुँचा। इस बार अभीतक तुम्हारा पत्र मुझे नहीं मिला । आज हम पटनामें हैं। यहाँ बहुत शान्ति है। इसी जगह राजेन्द्रबाबूका प्यारा विद्यापीठ है। यह स्थान ठेठ गंगाके किनारे खेतोंमें है। आसपास अन्य मकान नहीं हैं। दृश्य अच्छा कहा जा सकता है। विद्यापीठका वार्षिकोत्सव होनेके कारण विद्यार्थी और शिक्षक हर स्थानसे आये हैं। इसलिए आश्रमके तमाम मकान लोगोंसे भर गये हैं।

तुम्हारे लिए और आश्रमके लिए मैं कुछ काम बढ़ा रहा हूँ। यहाँके कार्यकर्त्ताओंकी स्त्रियाँ हमारी स्त्रियोंसे ज्यादा असहायावस्थामें हैं। इनमेंसे कुछ थोड़े दिनोंके लिए वहाँ आना चाहती हैं। उन्हें मैं रोकना नहीं चाहता, बल्कि उलटे प्रोत्साहन दे रहा हूँ। अगर इनमेंसे कुछ बहनें आयें तो मैं मानता हूँ कि तुम उनका स्वागत करोगी और जो बोझ बढ़ेगा उसे उठा लोगी। इन्हें वहाँ भेजनेका उद्देश्य यह है कि इनकी झिझक खुल जाये और वे कातना-पींजना सीख लें। उसके बाद मैं चाहता हूँ कि वे आकर यहाँ की बहनोंमें काम करें।

अगर तुममें से कोई इस मामलेमें कुछ कहना चाहे, तो जरूर कहे। यदि मुझसे जल्दबाजी हो रही हो तो मुझे रोकना। दुखीको शर्म नहीं होती। मुझे तुम दुखी समझना। मुझसे इन बहनोंकी विवशताका दुःख सहा नहीं जाता। वहाँ हम भी कुछ कम असहाय नहीं हैं। मगर ये हमसे भी ज्यादा असहाय हैं।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ ३६३७) की फोटो-नकलसे।

  1. जनवरी १९२७ के अन्तिम दिनोंमें गांधीजी पटनामें थे।