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हमारी बेबसी

  यह वास्तविक महत्त्वपूर्ण शक्ति अभी सुधारोंको कार्यान्वित करनेसे नहीं मिलेगी। यह शक्ति तो भीतरसे और नीचेसे ही प्राप्त करनी होगी। और तभी हम निश्चित किये गये संविधानको चला सकेंगे। आज तो किसी भी संविधानको कारगर तौरपर चला पाना असम्भव है। हममें आन्तरिक सामर्थ्य नहीं है। लोगोंके ऊपर जितना चाहिए हमारा उतना प्रभाव भी नहीं है। वह प्रभाव तो सच्ची और निःस्वार्थ सेवा करनेसे ही मिलेगा। हम जबतक इस मूल तथ्यको नहीं समझ लेते तबतक हमारे सभी कार्योंका परिणाम 'शून्य' ही रहेगा।

यदि मैं इस सिलसिलेमें चरखेका उल्लेख करूँ, तो अधीर पाठक हँसे नहीं। मैं कहता हूँ कि जनताके साथ जीवन्त सम्पर्क स्थापित कर पाना हमारे लिये तबतक असम्भव है जबतक हम उनके बीचमें जाकर और उनमें मिलकर, उनके संरक्षक बनकर नहीं, अपितु उनके सेवक बनकर काम नहीं करते।

अधीर पाठक समझ लें कि जिस जनताके हितार्थ उन्हें काम करनेके लिए कहा जाता है, जिनके नामपर वे बोलना चाहते हैं वह अधनंगे रहती हैं, आधापेट खाती हैं और सालभरमें उसका अधिकतर समय आरोपित बेकारीमें बीतता है। वाइसरायकी चीन-सम्बन्धी प्रस्तावपर लगाई गई बन्दिशसे और सुधारोंके विषयोंमें उनकी स्पष्ट घोषणासे हमारी आँखें खुल जानी चाहिए और हमें दिख जाना चाहिए कि वस्तुस्थिति कितनी बुरी है।

निकट भविष्यमें चीनको हिन्दुस्तानी सेनाका भेजा जाना एक अनीतिमय काम होगा। यह अच्छा हुआ कि कांग्रेस-कार्य-समितिने इससे अपने हाथ धो लिये। स्वातन्त्र्य संग्राममें लड़नेवाले चीनी जान लें कि हिन्दुस्तानी सेना उनके देशमें आयेगी तो सिर्फ इस कारण कि सम्भवतया, हम उनसे भी अधिक बेबस हैं। हिन्दुस्तानी सैनिक चीनियोंकी स्वतन्त्रताको कुचलनेके लिए पहली बार ही चीन नहीं भेजे जा रहे हैं। लार्ड डिकिन्सनने[१] अपने अमर, 'जॉन चाईनामैनके पत्रों' में बताया है कि हिन्दुस्तानी सैनिक चीनपर अफीम लादनेके लिए किस प्रकार काममें लाये गये थे। हम जानते हैं कि ईसाई कही जानेवाली ताकतोंने चीनमें क्या किया है। मगर जो जाति अपनी स्वाधीनताकी कीमत देनेके लिए तैयार है वह सदा स्वतन्त्रतासे वंचित नहीं रखी जा सकती। चीनके बारेमें यह एक शुभ बात है कि वह उसके लिए आवश्यक कीमत देनेके लिए तैयार मालूम पड़ता है।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-२-१९२७
  1. (१८६२-१९३२) अंग्रेज निबन्धकार, मीनिंग ऑफ गुड, जस्टिस एंड लिबर्टी, यूरोपियन एनार्की (१९१६); वार: इट्स नेचर, कॉज़ एंड क्योर(१९२०) इत्यादिके लेखक।