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३९. गयामें गन्दगी

हिन्दुओंके तीर्थराज गयाकी गन्दगीका विज्ञापन करनेकी मुझे कोई इच्छा नहीं है। गया शहरकी एक मुख्य गलीमें मैलेसे भरे दुर्गन्धयुक्त गड्ढोंको देखकर मेरी हिन्दूआत्मा विद्रोह कर उठी, और इसी कारण मुझे लाचार होकर गया नगरपालिका द्वारा दिये गये मानपत्रका[१] उत्तर देते हुए उसका ध्यान इस ओर विशेष रूपसे आकर्षित करनेके लिए बाध्य होना पड़ा। मैं जानता हूँ कि दूसरे बहुत-से तीर्थ-स्थानोंमें भी बहुत गन्दगी है; मगर मैंने गयामें जैसा देखा, वैसा कहीं अन्यत्र देखनेकी बात मुझे याद नहीं आती। यह सम्भव है कि लोग मुझे दूसरे तीर्थोंमें गन्दे हिस्सोंमें न ले गये हों। मगर गन्दगीको तोलनेके लिए सोनेके तराजू नहीं लगते। गयाका नाम तो मैं केवल उदाहरणार्थ लेता हूँ ताकि दूसरी नगरपालिकाओंका ध्यान इस बात की ओर आकर्षित कर सकूँ कि उनका पहला कर्त्तव्य अपने नगरोंकी सफाई होना चाहिए। यह एक काम तो नगरपालिकाकी राजनीति, दलबन्दी और षड्यंत्रों आदिसे अधिक परे होना चाहिए। जैसे नगरपालिकाकी आय-व्ययका हिसाब खरा और असन्दिग्ध रखना सभी दलोंका कर्त्तव्य होना चाहिए उसी तरह शहरकी सफाई भी बिलकुल व्यवस्थित और असन्दिग्ध रखना नगरपालिकाके हरएक दलका नैष्ठिक कर्त्तव्य होना चाहिए। हरएक नगरपालिकाको सफाई विज्ञान सिखानेके लिए एक आदर्श शाला स्थापित करनी चाहिए। हमें अभी शहरोंकी सफाईका पूरा ज्ञान नहीं है। जबतक हमारे घर ठीक हालतमें रहते हैं, तबतक हम इस बातकी परवाह नहीं करते कि हमारे पड़ोसियोंका क्या हो रहा है। हम शहरकी टट्टियोंको काममें लेना नहीं जानते। हम अपनी नालियाँ भी काममें लेना नहीं जानते। अतः हमें यह मानना ही पड़ेगा कि इस बड़े और महत्त्वपूर्ण प्रश्नको हल करनेके कठिन कामकी जिम्मेदारी हमारी नगरपालिकाओंपर है। मुश्किलें चाहे जो हों, यह काम करना ही होगा। तीर्थ स्थानोंमें, जहाँ हर साल लाखों आदमी यात्रा करने आते हैं, यह काम और भी अधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। गयामें मैंने गन्दगीसे भरे जो गड्ढे देखे, उनके होनेका कोई कारण न था। लोगोंको नदियोंके किनारे गन्दे करनेकी इजाजत देनेका कोई सबब नहीं है। यदि नगरपालिकाओंके सदस्य केवल यह निश्चय कर लें कि वे अपनी जिम्मेदारीके अन्तर्गत शहरोंका वैसा ही खयाल रखेंगे जैसा कि वे अपने घरोंका रखते हैं, तो वे नगर निवासियोंकी ओरसे किसी कठिनाई और अड़चनके बिना बहुतसे काम कर सकेंगे।

मगर कठिनाई तो अपने ही बीचसे पैदा होती है। नगरपालिकाओंके सदस्य प्रायः उदासीन होते हैं और कभी-कभी अपने ही चुने हुए अध्यक्षके रास्तेमें रोड़े अटकाते हैं। वे कभी-कभी आपसी झगड़ोंमें उलझे रहते हैं और सफाईकी ओर ध्यान नहीं देते। अब तो हमें अपने नागरिक कर्त्तव्यका पूरा भान होना ही चाहिए। इस बारेमें हमें

  1. देखिए खण्ड ३२, पृष्ठ ५६३-६५।