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पर्देको समाप्त कीजिए

पश्चिमसे अभी बहुत कुछ सीखना है। पश्चिमी लोगोंने बड़े-बड़े शहरोंका निर्माण किया है। वे ताजी हवा, स्वच्छ पानी और अपने चारों तरफकी सफाईका महत्त्व जानते हैं। जो शहर अपनी सफाईकी ओर उचित रीतिसे ध्यान देगा, उसके निवासियोंके स्वास्थ्य और समृद्धि दोनोंकी उन्नति होगी। इस बारेमें तीर्थस्थानोंको दिशा-दर्शन करना चाहिए। इन शहरोंको जो अवसर प्राप्त हैं वे दूसरे शहरोंको प्राप्त नहीं हैं। इस अंग्रेजी कहावतमें कि 'स्वच्छता देवत्वके निकटतम है' बहुत सार है। इस उक्तिमें बहुत समझदारी भरी हुई है। मनु, मूसा और मुहम्मद सभी अपने-अपने युगोंके लिए उपयुक्त स्वच्छताके नियम बना गये हैं। हमें वर्तमान आवश्यकताओंके अनुसार इनमें वृद्धि करनी होगी। इन प्राचीन शास्त्रकारोंसे इतना ही जान लेना काफी है कि वे स्वच्छताको सच्चे धार्मिक जीवनका एक अंग मानते थे।

[अंग्रेजीसे]
यंग इंडिया, ३-२-१९२७

४०. पर्देको समाप्त कीजिए

मैं जब कभी बंगाल, बिहार या संयुक्तप्रान्तमें गया हूँ, मैंने देखा है कि वहाँ पर्देकी प्रथाका और प्रान्तोंकी अपेक्षा अधिक कड़ाईसे पालन होता है। मगर मैंने दरभंगामें काफी रात बीते ऐसे शान्त वातावरणमें जहाँ शोरगुल और जबरदस्त भीड़ की धक्कामुक्की नहीं थी, भाषण देते समय देखा कि मेरे सामने पुरुष बैठे हैं और मेरे पीछे पर्देकी आड़में स्त्रियाँ बैठी हुई हैं। किन्तु मेरे पीछे स्त्रियाँ बैठी हैं, इसका पता मुझे यह बताये जानेपर ही चला। यह सभा हुई तो थी एक अनाथालयके शिलान्यासके सिलसिलेमें; परन्तु मुझसे पर्देके भीतर बैठी महिलाओंके प्रति कुछ शब्द कहनेके लिए कहा गया। सभामें आई हुई बहनोंकी संख्याका तो मुझे अनुमान नहीं हुआ, किन्तु जिस पर्देके पीछे वे बैठी थीं, उसे देखकर मेरा मन खिन्न हो गया। इससे मुझे बहुत दु:ख और अपमानका अनुभव हुआ। मैंने सोचा कि पुरुषोंके द्वारा पर्देकी बर्बर प्रथाको आग्रहके साथ कायम रखकर हिन्दुस्तानकी स्त्रियोंके प्रति कैसा अत्याचार किया जा रहा है। जिस जमानेमें यह प्रथा शुरू की गई थी, उस समय इसका थोड़ा-बहुत कोई उपयोग भले ही रहा हो, मगर अब तो यह बिलकुल बेकार हो चुकी है और इससे देशको असीम हानि पहुँच रही है। लगता है कि हमने पिछले १०० वर्षोंमें जो शिक्षा पाई है, उसका हमपर रत्ती-भर भी असर नहीं पड़ा है; क्योंकि मैं देखता हूँ कि शिक्षित परिवारोंमें भी पर्दा कायम है और उसका कारण यह नहीं है कि शिक्षित पुरुष इसमें विश्वास रखते हैं, बल्कि इसलिए है कि वे इस बर्बर प्रथाका मर्दानगीसे विरोध करने और उसका एकदम खात्मा करनेको तैयार नहीं हैं। मुझे स्त्रियोंकी ऐसी सैकड़ों सभाओंमें, जिनमें हजारों स्त्रियोंने भाग लिया हो, बोलनेका शुभ सुअवसर मिला है; मगर मैंने यह देखा है कि इन सभाओंमें आनेवाली स्त्रियोंके प्रति मैं जो विचार व्यक्त करता रहा हूँ, उनका उनके शोरगुलके कारण उनपर कोई प्रभाव नहीं पड़ सका है। जबतक वे अपने घरोंकी छोटी-सी चारदीवारीके भीतर या उन

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