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पत्र: आनन्दी, मणि, तारा, चन्दनको

  कातनेसे सम्बन्धित सारी क्रियाओंमें पूरी निपुणता प्राप्त कर लेना। एक भी किया बाकी न रहे। मैं अपने सफरमें नित्य यह अनुभव करता हूँ कि चरित्रवान स्त्रियोंकी बड़ी जरूरत है।

मणिलाल कोठारीके नाम लिखित पत्र पढ़नेका तुम्हें अधिकार तो नहीं था, परन्तु पढ़ लिया तो कोई बात नहीं। भारतीय युवती ब्रह्मचर्य-पालनकी शक्ति रखती है, इसे आज कोई भी माननेको तैयार नहीं है। तुम और आश्रमकी दूसरी कुमारियाँ लोगोंके इस अविश्वासको झूठा साबित कर दिखायें; वह दिन देखनेके लिए मैं तो तरस रहा हूँ।

बापूके आशीर्वाद

[गुजरातीसे]
बापुना पत्रो——४: मणिबहेन पटेलने

४४. पत्र: आनन्दी, मणि, तारा, चन्दनको

रविवार [६ फरवरी, १९२७][१]

चि॰ आनन्दी, मणि, तारा, चन्दन,

तुम सबको अलग-अलग पत्र लिखनेका समय तो मुझे नहीं है। तुम्हारे पत्र पढ़कर मुझे आनन्द हुआ। तुम सब लड़कियाँ लिखावट सुधारो और स्याहीसे लिखनेकी आदत डालो।

यह रेशम जैसा कागज नेपालमें हाथसे बनाया जाता है। यह मुझे तुलसी मेहरजीने भेजा था। ये कागज तो बड़े आकारके होते हैं। मैंने उन्हें काटकर उनके छोटे-छोटे टुकड़े बना लिये हैं।

तुम सब लड़कियोंको जल्दी उठनेकी आदत डाल लेनी चाहिए। अब ठंड नहीं है। हरिइच्छासे कहना कि वह मुझे पत्र लिखे और मेरे पत्रकी राह न देखे।

आज मैं गोमतीबहनसे मिलूँगा।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ४९२२) से।

सौजन्य : हरिइच्छा बहन कामदार

  1. पत्रमें गोमतीबहनसे मिलनेकी बात है, गोमतोबहन अकोलामें रहती थीं और गांधीजी अकोला ६-२-१९२७ को गये थे।