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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझे प्रो॰ रामदेवका पत्र मिला है, लेकिन आज मेरे पास विस्तारसे समय नहीं रह गया है।

हाँ, अब मैं पहलेसे सशक्त हूँ। ऐसा कबतक रहेगा कुछ पता नहीं।

सस्नेह,

तुम्हारा,
बापू

अंग्रेजी (सी॰ डब्ल्यू॰ ५२०२) से।

सौजन्य: मीराबहन

४८. पत्र: अब्बास तैयबजीको

अकोला
७ फरवरी, १९२७

प्रिय भुर्रर्रर्र,[१]

आपका पत्र पाकर बड़ी खुशी हुई। निश्चय ही काठियावाड़में आपको बहुत सफलता मिली। रामदासने उसके बारेमें मुझे सब कुछ बताया।

सुहैलाको[२] बेशक मेरी दुआएँ मिलेंगी; बशर्ते कि वे दोनों अच्छी तरह रहें और खादी पहनें।

आप डा॰ मेहताके लिए जो पत्र चाहते हैं, सो इसके साथ रख रहा हूँ। लेकिन क्या रकमकी खातिर आपका रंगून जाना जरूरी ही है? आप जो कुछ भी यहीं इकट्ठा कर सकते हों, क्यों न कर लें; बाकीका आपके रंगून जाये बिना इस बातपर ध्यान देते हुए इकट्ठा किया जा सकता है कि आप हिन्दुओंको चन्दा देनेमें शरीक होनेकी इजाजत दे देंगे। निस्सन्देह यदि आप रंगून जायें, तो जिस छोटी रकमका आपने उल्लेख किया है, उसे आप चन्द दिनोंमें ही इकट्ठा कर लेंगे।

सस्नेह,

आपका,
भुर्रर्रर्र

अंग्रेजी (एस॰ एन॰ ९५५७) की फोटो-नकलसे।

  1. गांधीजी और अब्बास तैयबजी एक दूसरेका स्वागत इसी तरह किया करते थे।
  2. अब्बास तैयबजीकी पुत्री; उन्हीं दिनों अलीगढ़के मुहम्मद हबीबसे उसका विवाह निश्चित हुआ था।