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५०. पत्र: मगनलाल गांधीको

[७ फरवरी, १९२७][१]

...[२]सेवा करें, दूसरे हमारी सार-सँभाल करें, इसके लिए हमारी योग्यता क्या है? तुम इस बातपर विचार करना। संसारकी सेवा तो जब करेंगे तब करेंगे, लेकिन इस समय तो हम, संसार हमें सेवक और सेविका मानकर जो कुछ प्रदान करता है उसे लेते चले जा रहे हैं। हमें चाहिए कि हम, दुनिया हमसे जो आशाएँ रखती है उन्हें पूरा करें। ऐसा करनेमें तुम अपना अंश तो पूरा दोगे न?

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (सी॰ डब्ल्यू॰ ८८३९) से।

सौजन्य: राधाबहन चौधरी

५१. पत्र: आश्रमकी बहनोंको

अकोला
मौनवार [७ फरवरी, १९२७]

बहनो,

आज तो मैं आश्रमके कुटुम्बीजनोंके बीच ही मौन रखे हूँ। किशोरलालभाई, गोमतीबहन, नाथजी, तुलसी मेहर और तारा तो आश्रमके ही माने जायेंगे न? और नानाभाई, उनकी धर्मपत्नी और सुशीलाको कौन आश्रमके बाहरका गिनेगा? इसलिए इस सप्ताह मुझसे दूसरे समाचारोंके बजाय तुम्हें इन्हीं कुटुम्बीजनोंका समाचार सुननेकी उम्मीद रखनी चाहिए।

गोमतीबहनको अभीतक हल्का-हल्का बुखार आ जाता है; वह बिस्तरमें पड़ी है। परन्तु प्रसन्न है। चेहरेसे कोई नहीं कह सकता कि वह अभी किसी बड़ी बीमारीसे उठी हैं। इस प्रसन्नताका कारण उसकी श्रद्धा है। हम सबमें ऐसी श्रद्धा पैदा हो।

किशोरलालभाईकी गाड़ी तो वैसी ही चल रही है। यह नहीं कहा जा सकता कि उनमें पहलेसे कुछ ज्यादा शक्ति आई है। कल रातको तो उन्हें बुखार भी आ गया था। जाड़ा भी लग रहा था। बुखार थोड़ी देरके बाद उतर गया था।

जहाँ स्नेहीजनोंमें बीमारी हो वहाँ नाथजी न हों, यह तो हो ही कैसे सकता है?

  1. पत्रमें दूसरोंकी सेवा स्वीकार करनेकी जो चर्चा मिलती है उससे मालूम होता है कि यह पत्र पिछले पत्रके साथ-साथ ही लिखा गया होगा।
  2. पत्रका प्रारम्भका भाग उपलब्ध नहीं है।