पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

५४. पत्र : विलियम स्मिथको

कुमार पार्क, बंगलोर

२५ जून, १९२७

प्रिय श्री स्मिथ,

आपके भेजे कागजात[१] में ध्यानपूर्वक पढ़ गया हूँ । शंकालु लोगोंके लिए ये दिलचस्प और उपयोगी हैं। मैं तो पक्का आस्थावान व्यक्ति हूँ, लेकिन साधनहीन और अज्ञानी हूँ । इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप मेरे और मुझ जैसे अन्य लोगोंके लिए - और ऐसे लोगोंकी एक खासी बड़ी संख्या है - कोई ऐसी ठोस योजना तैयार कर दीजिए जिसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति, अगर उसे कुशल लोगोंकी सहायता और पैसा सुलभ हो तो, उसे तत्काल कार्य रूप दे सके। इसलिए क्या आप कोई ऐसी साफ-सुथरी योजना दे सकते हैं जिसे दलील वगैरह से सजानेकी कोशिश न की गई हो ? उसमें योजनाकी रूप-रेखा, आकार और प्रकार बताते हुए आवश्यक सामानका पूरा ब्योरा तथा मशीनों वगैरहपर लागत का अनुमान दिया जाना चाहिए और साथ ही उस व्यवसायको चलानेमें होनेवाले खर्च तथा उससे होनेवाली आमदनीका भी मोटे तौरपर तखमीना होना चाहिए।

आपने और आपके आदमियोंने इम्पीरियल डेरी इंस्टिट्यूटमें[२] मुझे जो कुछ दिखाया, उसपर में गम्भीरता से सोचता रहा हूँ । यों तो इस सम्बन्धमें मुझे कई सवाल पूछने हैं, लेकिन फिलहाल में इतना ही कहना चाहता हूँ कि इस संस्थाको भारतकी जरूरतोंके मुताबिक ढालनेके लिए इसमें और दो चीजें जोड़ना आवश्यक है ।

वहाँ बधिया करनेके तरीकोंके अध्ययनके लिए कोई सुविधा नहीं दिखाई देती । जबतक गायोंके झुंडको साँड़ोंके साथ बेतरतीब ढंगसे ठूंस-ठाँसकर रखना बन्द नहीं किया जाता तबतक भारत-भरमें इनकी नस्लमें सुधार कर पाना मुझे तो असम्भव ही प्रतीत होता है । इसका एकमात्र उपाय बधिया करना ही दिखाई देता है, और बधिया करनेका प्रचलित देशी तरीका घोर क्रूरतापूर्ण है ।

दूसरे, मुझे लगता है कि भारतकी जरूरतोंको वही डेरी पूरा कर सकती है जहाँ चमड़ेको कमाने वगैरहका भी काम किया जाता हो । पाश्चात्य देशोंने तो आर्थिक सफलता के लिए एक सुविधाजनक रास्ता ढूंढ़ लिया है कि वे जिन पशुओंको भाररूप मानते हैं उनका सफाया ही कर देते हैं । भारतमें हमें पशु-समस्याके आर्थिक पक्षपर इस मर्यादाका ध्यान रखते हुए ही विचार करना है कि पालने-पोसनेपर होनेवाले खर्चके अनुपात में जिन पशुओंसे कम लाभ होता है या कुछ भी लाभ नहीं होता उन्हें भी हमें खिलाना-पिलाना और रखना तो है ही । इसलिए मुझे लगता है

  1. ३-१-१९२७ और १०-६-१९२७ को भेजे कागजात (एस० एन० १२९२६ ) ।
  2. देखिए परिशिष्ट १, और मुखचित्र भी ।