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६२. पत्र : डॉ० एम० एस० केलकरको

कुमार पार्क, बंगलोर

२८ जून, १९२७

प्रिय डाक्टर,

आपका पत्र मिला। बेशक जब में, हम दोनोंके बीचकी दूरी बढ़ने की बात कहूँ तो उसका मतलब हमारी विचार पद्धतियोंकी दूरी बढ़ना ही होगा उसका अर्थ हमारी स्नेह भावनाकी दूरी बढ़ना कभी हो ही नहीं सकता । आपसे मेरा चाहे जितना भी मतभेद हो, आपके दृष्टिकोणसे मेरा दृष्टिकोण चाहे जितना भी भिन्न हो, आपके प्रति मेरा स्नेह कभी कम नहीं हो सकता। यह कहनेकी जरूरत नहीं कि में आपको खुद अपनी तरह सत्यान्वेषी मानता हूँ । लेकिन, मुझे ऐसा लगता है कि आपके निष्कर्ष बहुत ही अपर्याप्त तथ्योंपर आधारित हैं, और अगर आप अपने फलित ज्योतिष सम्बन्धी पर्यवेक्षणों अथवा जिसे काला जादू कहते हैं, के आधारपर किसी विज्ञानकी नींव खड़ी करना चाहते हैं तो उसके लिए आपके पास ऐसे पुष्ट और पर्याप्त प्रमाण होने चाहिए जिनके सही होने में किसी प्रकार शंकाकी कोई गुंजाइश ही न हो। आपके साथ हुई बातचीतसे में जो कुछ समझ पाया हूँ वह तो यही है कि आपके पास ऐसे तथ्य प्रमाण नहीं जान पड़ते जिनके आधारपर आप अपने निष्कर्षो के अन्तिम होनेका दावा कर सकें अथवा जिनके बलपर आप कोई प्रारम्भिक अनुमान - सिद्धान्त भी निकाल सकें। क्या आप ऐसा नहीं मानते कि जिन वस्तुओंको हम जैसे ही ईमानदार और उत्साही लोगोंने खूब देख-परखकर अस्वीकार कर दिया है, उन्हें स्वीकार करनेमें हमें, आप जितनी सावधानी बरत रहे हैं, उससे बहुत अधिक सावधानी बरतनेकी जरूरत है ?

क्या आप घूलिया जाकर एक दम्पतिका[१] इलाज करनेके लिए फीस लेनेको तैयार हैं? अगर तैयार हों तो मुझे यह सूचित करनेकी कृपा करेंगे कि आपकी फीस क्या होगी ? पतिको बराबर कब्जकी शिकायत रहती है और मुझे लगता है कि इसमें उपवाससे लाभ होगा । पत्नीके रोगके बारेमें मुझे पर्याप्त जानकारी नहीं है ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १४१७४) की फोटो- नकलसे ।

  1. देखिए " तार : रामेश्वरदास पोद्दार को ", २३-६-१९२७।