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पत्र : द० वा० कालेलकरको

बीमार रहने के कारण, में संघकी कार्यवाहीमें इधर कोई सक्रिय रुचि नहीं ले पाया हूँ । इसलिए मेरा सुझाव है कि इस सम्बन्धमें आप आगे जो लिखा-पढ़ी करें वह अहमदा- बादके पतेपर संघ के मंत्रीके साथ ही करें। बेशक जरूरत पड़नेपर वे मुझसे सलाह आपका पत्र में सतीश बाबूको भेज रहा हूँ ताकि समय बरबाद न हो । लेते हैं ।

हृदयसे आपका,

श्रीयुत जामिनीभूषण मित्र

खालिसपुर आश्रम

पो० ओ० बी० खालिसपुर

( खुलना)

अंग्रेजी (एस० एन० १९७८४) की माइक्रोफिल्मसे ।

६५. पत्र : द० बा० कालेलकरको

कुमार पार्क,बंगलोर

२८ जून,१९२७

चि० शंकर चाहे जो करे, उसके लिए तुम्हें तनिक भी दुःख नहीं होना चाहिए । वह बेचारा क्या करे, तुम्हारे पीछे दौड़े या काकीकी सीख माने अथवा उसके आस- पास जो हवा बह रही है उसके साथ चले। मैं तो रोज यही अनुभव कर रहा हूँ कि मनुष्य बहुत पराधीन है । उसे स्वतन्त्रता केवल मोक्ष प्राप्त करनेकी है। इसके अतिरिक्त वह जो भी करता है उससे उसके पराधीनताके बंधन दृढ़ ही होते हैं। इसकी सचाईकी जाँच तुम आसानीसे कर सकोगे और तब फिर शंकर अथवा काकीकी बात ही नहीं सोचोगे ।

बाल काकीके साथ रहना चाहे, इसमें आश्चर्यकी बात नहीं है। इसका इलाज तो यही है कि यदि हम काकीको आश्रममें न लानेका ही निर्णय करें तो हम उसे उसकी इच्छानुसार चुनाव करनेकी सुविधा दें। या तो वह काकीके साथ बेलगाँवमें अथवा वे जहाँ हों वहाँ या फिर आश्रममें, जहाँ हम और लोगोंको रखते हैं वहाँ, रहे। काकी आश्रम में रह ही नहीं सकतीं, इस निर्णयपर मैं अभी नहीं पहुँचा हूँ । बहुत समय हो गया काकीको लिखवाया था किन्तु अबतक उनका उत्तर नहीं मिला है।

गंगूबहून तुम्हारे पास रहते हुए गंगाबहनके सम्पर्क में आये यह बात मुझे बहुत पसन्द है । गंगूबहन मुझे बिलकुल ही भोली बालिका जान पड़ती है । गंगाबहन आश्रम- की सभी बहनोंका एक अलग समाज बना लें, यह मुझे तो बहुत अच्छा लगेगा। वे धीरे-धीरे इसे आरम्भ करें और जो उसमें भाग लेना चाहें, वे भाग लें। आदर्शके रूपमें मुझे यह बात बहुत भायेगी कि आश्रम में पति-पत्नी अलग-अलग रहें। किन्तु फिलहाल इसपर अमल करना कठिन जान पड़ता है। किन्तु यदि हम आदर्शको स्वीकार कर लें तो कभी-न-कभी उसपर अमल भी किया जा सकेगा । इस समय तो