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७०. पत्र : कुवलयानन्दको

कुमार पार्क,बंगलोर

२९ जून,१९२७

प्रिय भाई,

आपका पत्र[१] मिला, धन्यवाद । दुःखके साथ सूचित करना पड़ता है कि गत रविवार से पहलेवाले रविवारको रक्त चाप लेनेपर पता चला कि वह १५० से बढ़कर १६० पर पहुँच गया है । डाक्टर लोग इसके कारण का पता नहीं लगा पाये । फिर मैंने सर्वांगासनके रूपमें और मेरे द्वारा वर्णित जिस आसनको आपने हलासन कहा था, उसके रूपमें मैं जो कुछ करता था, वह उनके सामने ही करके दिखाया। उन्होंने मुझसे कुछ समयके लिए दोनों आसन बन्द कर देने को कहा । सो मैंने बन्द कर दिये । वैसे भी, जैसा कि मैंने आपसे पिछले पत्रमें कहा था, रक्तचापके बढ़ते ही मैं आपकी सलाह मिलने तकके लिए सर्वांगासन बन्द कर देता । पिछले रविवारको फिर रक्तचाप लिया गया और इस बार वह ५ डिग्री कम आया । इसलिए में समझता हूँ कि अभी कुछ दिनोंतक दोनों आसनोंको बन्द रखना ही मेरे लिए अच्छा होगा । मगर, कमसे कम आपका उत्तर मिलने तक तो उन्हें बन्द रखूंगा ही ।

शेष सब पूर्ववत् चल रहा है - मतलब कि लम्बी साँस लेना, शवासन और मालिश । में अब मक्खन भी खाता हूँ और उससे कोई गड़बड़ी नहीं होती । अब उसकी मात्रा बढ़ाकर छोटे तीन चम्मच कर दी है। अब जबतक आप न कहें कि इस मात्राको बढ़ाना आवश्यक है तबतक इससे अधिक मक्खन लेनेका मेरा इरादा नहीं है। दूध अब भी ३० औंस ही लेता हूँ । अब मैं जितनी भाखरियाँ खाता हूँ, उन्हें तोल लेता हूँ और पकी हुई अवस्थामें उन भाखरियोंका वजन ३ औंस होता है। तनिक भी व्यतिक्रम होनेपर मेरा रक्त चाप बढ़ जाता है; इसलिए क्या आप चाहेंगे कि मैं भुजंगासन करूँ ? जहाँतक शारीरिक शक्तिका सम्बन्ध है, इन आसनोंको करनेमें मुझे कोई कठिनाई नहीं होती । और खुद मेरी तो समझमें नहीं आता कि जब इन आसनोंका शरीरपर कोई बुरा असर देखने में नहीं आता तो इनमें से कुछके कारण रक्त चाप क्यों बढ़ना चाहिए। मेरा खयाल है, जिन लोगोंका स्वास्थ्य ठीक होता है, उनका रक्त चाप इनके कारण नहीं बढ़ता। अगर आप यह बतायें कि रक्त- चापकी दृष्टिसे कौनसे आसन निश्चित रूपसे हानि-रहित हैं तो कृपा होगी ।

हृदयसे आपका,

मो० क० गांधी

अंग्रेजी (जी० एन० ५०५०) की फोटो नकलसे ।

  1. २२ जून, १९२७ का पत्र |