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हमारा कलंक

उदाहरणके तौरपर बाल विधवाओंके कष्टोंपर विचार करना भी उतना ही तर्क- सम्मत होता, क्योंकि उन्हें भी तो उतनी ही भयंकर यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। किन्तु, इस पत्रकी किंचित् असंगतिके कारण उस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सवालकी ओरसे आँखें बन्द नहीं की जा सकतीं जिसे श्रीयुत नाडकर्णीने बड़े ही जोरदार ढंगसे पेश किया है। मैं उनके इस कथनसे पूरी तरह सहमत हूँ कि अगर हिन्दू-मुस्लिम एकताके बिना स्वराज्य असम्भव है तो जबतक हिन्दू धर्मपर अस्पृश्यताके रूपमें लगे कलंकको नहीं मिटाया जाता तबतक वह और भी असम्भव है । इस प्रश्नसे मेरा कोई सरोकार नहीं कि समय आनेपर जो भी राजनीतिक संविधान तैयार किया जा सकता है, उसमें अस्पृश्योंका स्थान क्या होगा । अगर हम हिन्दुओंका मन साफ नहीं होगा तो अस्पृश्योंका स्थान ऊपर उठानेके लिए संविधानमें चाहे जो भी कृत्रिम व्यवस्थाएँ की जायें, सभी धूलिसात् हो जायेंगी । पृथक निर्वाचक मण्डलों और संविधान में किसी वर्ग-विशेषके साथ अलग ढंगके व्यवहारके विरुद्ध मैंने जो कारण पेश किये हैं, वे अस्पृश्योंके सम्बन्धमें भी उतने ही लागू होते हैं। अस्पृश्यताको दूर करनेका यह काम किसी भी कानूनी व्यवस्थाके द्वारा नहीं किया जा सकता। यह तो तभी हो सकता है जब हिन्दुओंकी आत्मामें इस बुराईके खिलाफ काम करनेकी प्रेरणा हो और वे स्वेच्छासे इस कलंकको मिटा दें। अस्पृश्योंके प्रति सवर्णोंका यह परम कर्तव्य है ।

कहीं ऐसा न हो कि हम प्रतीक्षा ही करते रह जायें और भारतीयों में सबसे जरूरतमन्द समाजकी आवश्यकताओंकी ओर हमारा ध्यान तब जाये जब दलित वर्गों संघ और सवर्णों तथा अस्पृश्योंके बीचके दंगे हमारी आँखोंमें अँगुली डालकर उस समाजकी आवश्यकताओंके प्रति हमारी आँखें खोलें ।

यह भयावह वाक्य पत्रके अन्तिम हिस्से में आया है। इसके पीछे जो सचाई है, उससे इनकार करना असम्भव है। इस वाक्यको पढ़कर मुझे मेरे और स्वर्गीय हरिनारायण आपटेके[१] बीच हुई बातचीतका स्मरण हो आता है । यह बात गोखलेजीकी मृत्युसे ठीक पहले की है। हम लोग पूनामें 'सर्वोन्ट्स ऑफ इंडिया सोसाइटी के कार्या- लयमें बातचीत कर रहे थे । में यह समझा रहा था कि कतिपय मिशनरियोंकी तरह दलित वर्गोंके बीच असंतोष भड़काने और अशान्ति पैदा करनेके बजाय तथाकथित उच्च वर्गोंके लोगोंके बीच काम करना ज्यादा अच्छा है। मैं इस क्षेत्रमें नया-नया ही आया था । दलित वर्गके लोग जिस दुःखके सागरमें डूब रहे थे, उसकी थाह मैंने स्वर्गीय हरिनारायण आपटेकी तरह गहराईमें उतरकर नहीं ली थी । उस सुधारककी आत्मा शोषक वर्गों द्वारा दलित वर्गोंके साथ किये जानेवाले अन्यायोंके कारण लज्जासे गड़ी जा रही थी । एक दार्शनिक तटस्थताका भाव अख्तियार करते हुए भविष्यकी बात सोचकर मैंने उनसे पूछा कि क्या आप दलित वर्गोंको हमारे खिलाफ भड़कायेंगे । उन्होंने छूटते ही अत्यन्त रोषके साथ उत्तर दिया :


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  1. (१८६४-१९१९ ); मराठीके प्रसिद्ध उपन्यासकार ।