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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


हाँ, अगर मुझसे बने तो मैं आज ही उन्हें हम सबके खिलाफ विद्रोह करके हमसे अपना वह स्वत्व जबरदस्ती छोन लेनेको प्रेरित करूँ जो हम अपनी इच्छासे और कर्तव्य मानकर उन्हें देने को तैयार नहीं हैं ।

अस्पृश्यता निवारणकी दिशामें काफी प्रगति हुई है । लेकिन, अब इससे कई गुना ज्यादा प्रगति अपेक्षित और आवश्यक है। अधिकांश सुधार खून-खराबीके बाद ही हो पाये हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि एक समय ऐसी स्थिति आ जाती है कि दलितोंमें और अधिक सहनेका धैर्य नहीं रह जाता, और फिर वे कानूनको अपने हाथमें लेकर, दुःख और क्रोधसे उन्मत्त होकर, अत्याचारियोंका सफाया कर देते हैं और फिर अपनी बारी आनेपर अवसर मिलते ही वे खुद ही अत्याचारियोंकी तमाम गल- तियाँ दोहराने लगते हैं । इसलिए, यद्यपि आज, मैं समझता हूँ, मेरा मन भी हरि- नारायण आपटेकी तरह ही क्षोभसे भरा हुआ है, फिर भी मैं यह आशा करता हूँ कि तथाकथित उच्चवर्गीय हिन्दू समय रहते अपने कदम वापस ले लेंगे और दलित वर्गोंके साथ न्याय करेंगे। इसमें अब काफी विलम्ब हो चुका है। साथ ही में यह भी आशा करता हूँ कि अगर वे लोग अपनी गलती महसूस करके प्रायश्चित्त नहीं करते तो भी दलित वर्गकि लोग अन्यायियोंके खिलाफ विद्रोह करने जैसा कोई अविवेक- पूर्ण काम नहीं करेंगे। मुझे तो इसी आशाके साथ इस बुराईको दूर करनेके लिए काम करना है । मुझे इस आशासे काम करते जाना है कि वे कष्ट सहन और आत्म- शुद्धिकी प्रक्रियासे गुजरते हुए अपने स्वत्व और अपने हिन्दुत्वको दुनियाके सामने प्रतिष्ठित करेंगे और इस तरह यह सिद्ध कर देंगे कि वे उन लोगोंकी अपेक्षा श्रेष्ठ हिन्दू हैं जो आज अपनी करतूतोंसे मनुष्य और ईश्वरकी दृष्टिमें अपने-आपको और हिन्दू धर्मको कलंकित कर रहे हैं। जिन पुरुषों और स्त्रियोंके मनमें अस्पृश्योंके लिए श्रीयुत नाडकर्णीकी ही तरह संवेदना और सहानुभूति है, वे सब इस बीच अस्पृश्योंके कष्टों और कठिनाइयोंके हिस्सेदार बनकर खुद भी अस्पृश्योंकी तरह जीवन बिता सकते हैं और इस तरह उनके सच्चे हितैषी, सच्चे साथी बन सकते हैं ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ३०-६-१९२७