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७६. बंगलोर खादी-प्रदर्शनी

श्रीयुत चक्रवर्ती राजगोपालाचारी और गंगाधरराव देशपाण्डे बंगलोर में होनेवाली आगामी खादी-प्रदर्शनीको पूर्ण रूपसे सफल बनानेके लिए जोरदार तैयारी कर रहे हैं। वे आकारके बजाय प्रकारको ध्यान में रखकर चल रहे हैं, इसलिए उन्होंने प्रदर्शनी- की व्याप्तिको जान-बूझकर सीमित रखा है । इसी कारण यह प्रदर्शनी अखिल भारतीय प्रदर्शनी न होकर दक्षिण भारतीय प्रदर्शनी होगी। लेकिन, तकनीकी चीजोंका पूरा प्रदर्शन हो सके और यह प्रदर्शनी एक ऐसा पदार्थपाठ प्रस्तुत कर सके जिससे लोग काफी कुछ सीख सकें, इस खयालसे वे अन्य प्रान्तोंको भी आवश्यक सहायता देनेके लिए आमन्त्रित कर रहे हैं। इसलिए जो लोग ओटनेसे लेकर हाथसे बुनने तककी खादी तैयार करनेकी तमाम विधियाँ सीखना, इन प्रक्रियाओंमें प्रयुक्त साधनोंका अध्ययन करना और विशेषज्ञों द्वारा उनको चलाये जाते देखना चाहते हैं, वे प्रदर्शनी देखने अवश्य जायें । मैसूरमें खादीके भविष्यके विषयमें यह एक शुभ संकेत है कि राज्यने प्रदर्शनीके खर्चके लिए ५०० रुपयेका अनुदान दिया है, और उद्योग-निदेशक प्रदर्शनी समितिके सदस्य बन गये हैं । सच तो यह है कि खादीका आर्थिक और लोक-कल्याणकारी पक्ष इतना अधिक महत्त्वपूर्ण है कि आश्चर्य इस बातपर होता है कि राजाओं-महाराजाओंने अबतक इस आन्दोलनको, जितनी चाहिए, उतनी सहायता क्यों नहीं दी । हर व्यक्ति इस बातको स्वीकार करता है कि करोड़ों ग्रामवासियोंको किसी सहायक धन्धेकी आवश्यकता है । ग्रामोद्धारके सम्बन्धमें देशमें बीसियों कागजी योजनाएँ नित्य वितरित की जा रही हैं। लेकिन, जिस तरह खादी-योजना सबके लिए उपयोगी है, उस तरह और कोई योजना उपयोगी नहीं है । और जहाँतक मैं जानता हूँ, जितने बड़े पैमानेपर खादी-योजनाको आजमाया जा रहा है, उतने बड़े पैमानेपर और किसी योजनाको नहीं आजमाया गया । यह कोई छोटी-मोटी सफलता नहीं है कि आज कमसे कम १,५०० गाँवोंमें खादी-योजनाको क्रियान्वित किया जा रहा है।

इस बात से किसीको - भले ही वह सरकारी अधिकारी ही क्यों न हो - डरना नहीं चाहिए कि खादीका एक राजनीतिक पहलू भी है। सच तो यह है कि जब खादीसे किसी राजनीतिक परिणाम के उत्पन्न होनेकी बात कही जाती है तो बहुतसे सुधी राजनीतिज्ञ भी उसपर हँसते हैं। और अगर खादीके सम्बन्धमें ' राजनीतिक ' शब्दका प्रयोग उसी अर्थ में किया जाये जिस अर्थ में कौंसिलोंके सन्दर्भ में किया जाता है। तो उनका हँसना वाजिब भी होगा । खादीका राजनीतिक महत्त्व ठीक उसी अर्थ में है जिस अर्थ में शिक्षा, सहकारी योजनाओं अथवा मद्य-निषेधका है। किसी भी देश द्वारा उठाये किसी भी प्रगतिशील कदमका राजनीतिक प्रभाव होना अनिवार्य है । चाहे वाइसराय हो, चाहे राजा-महाराजा अथवा कोई अन्य व्यक्ति, अगर वह देशद्रोही नहीं है तो हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करनेके लिए सक्रिय प्रयत्न करना