पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१२३

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इस भूल-सुधारको प्रकाशित करते हुए मुझे हर्षका अनुभव हो रहा है । वास्तव- में 'मॉडर्न रिव्यू' में इस टिप्पणीको पढ़नेके बाद ही मुझे मालूम हो पाया कि मैं स्वर्गीय निवेदितासे उनके घरपर नहीं बल्कि अन्यत्र, जहाँ वे अतिथिके रूपमें रह रही थीं, मिला था । पाठकोंको मेरी दुखद सीमाओंको स्वीकार करके चलना चाहिए। बहुत चाहते हुए भी मैं बहुत कम पढ़ पाता हूँ - इतना कम कि जिन लोगोंने आधुनिक भारतके निर्माणमें योगदान दिया है, उन सबकी जीवनियाँ भी नहीं पढ़ पाया हूँ । मुझे सन्तोष सिर्फ इस बातका है कि इसका कारण मेरा आलस्य नहीं, बल्कि कर्म-संकुल जीवन रहा है । अपनी युवावस्थाके प्रारम्भसे ही मेरा जीवन आंधी-तूफानोंसे भरा रहा है, जिससे मुझे अधिक पढ़नेका समय नहीं मिल सका । में निश्चयपूर्वक यह नहीं कह सकता कि इससे कुल मिलाकर मुझे लाभ हुआ है अथवा हानि, लेकिन अगर इससे लाभ हुआ है तो मैं कहूँगा कि वह अनायास ही हुआ है, इसके लिए मैंने कोई प्रयत्न नहीं किया है । अतः इसके लिए मैं किसी प्रकारके श्रेयका दावा नहीं कर सकता । और मैं हर सप्ताह जो अपनी जीवन कथा[१] लिख रहा हूँ, उसमें अगर कुछ स्त्रियों और पुरुषोंके विषयमें भी लिखता हूँ तो वह सिर्फ इसलिए कि जहाँतक मुझसे बन सके वहाँतक यह दिखा सकूं कि सत्यके अन्वेषणमें मेरा मस्तिष्क किस प्रकार काम करता रहा है । इसलिए मैं जीवनके उन असंख्य प्रसंगोंकी कोई चर्चा नहीं करता जो निश्चय ही अन्यथा बड़े रोचक समझे जायेंगे, और इसी प्रकार बहुत-सी स्त्रियों और पुरुषोंका भी उल्लेख छोड़ देता हूँ। और इस कथामें मुझे जिन व्यक्तियोंका उल्लेख करना पड़ता है उनके बारेमें मैं जो कुछ लिखूं उसे अगर पाठक मेरा आखिरी फतवा अथवा तथ्यकी दृष्टिसे सर्वथा सही मान लें तो यह उन लोगोंके प्रति और मेरे साथ भी अन्याय करना होगा। ऐसे उल्लेखोंके बारेमें यही समझना चाहिए कि इनमें मैंने, जिस समयसे इन उल्लेखोंका सम्बन्ध है, उस समय मेरे मनपर क्या प्रतिक्रिया हुई, इसी बातको प्रकट किया 1 इस कथामें मैंने सिस्टर निवेदिता, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि देवेन्द्रनाथ ठाकुर और अन्य लोगोंकी चर्चा सिर्फ अपने सत्यके आकुल अन्वेषणके प्रयत्नोंको समझाने और इस मुद्देको स्पष्ट करनेके लिए की है कि उन दिनों भी दक्षिण आफ्रिकामें में जो राजनीतिक कार्य कर रहा था वह उस अन्वेषणका अभिन्न अंग था और उस अन्वेषणको मैंने कभी भी राज- नीतिक कार्यके सम्मुख गौण नहीं होने दिया । इसलिए मैंने 'मॉडर्न रिव्यू' की इस टिप्पणीको पढ़कर अवसर मिलते ही तुरन्त बड़े हर्ष के साथ यहाँ उद्धृत किया है । ________________________________

तो इस शब्दका प्रयोग किया था अथवा नहीं, क्योंकि यंग इंडियामें प्रकाशित उक्त अध्याय गुजराती नवजीवनसे अनूदित है। इसके बाद उन्होंने 'वॉलेंटाइल' शब्दके अंग्रेजी शब्दकोषोंमें दिये गये अर्थोंका हवाला देते हुए इसका मतलब अस्थिर, परिवर्तनशील, चंचल आदि बताया था और कहा था कि इसके विपरीत सिस्टर निवेदिता वास्तवमें बहुत गम्भीर और स्थिरचित्त थीं और हिन्दू-धर्मं तथा हिन्दुस्तान के प्रति उनकी आस्था बराबर दृढ बनी रही। लेखकने गांधीजीके इस कथनसे सहमति प्रकट की थी कि हिन्दू धर्मके प्रति उनका स्नेह उमड़ा पड़ता था।

  1. तात्पर्य गांधीजीकी आत्म कथाके अध्यायोंसे है, जो गुजराती नवजीवनमें २९-११-१९२५ और यंग इंडिया में ३-१२-१९२५ से प्रकाशित हो रहे थे।