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सन्देश : दक्षिण भारतके लोगोंको

लम्बी लाठियाँ थाम रखी थीं, उन्हें रख देने को मजबूर किया, हालांकि अपने पास लाठियाँ रखनेके लिए किसी प्रकारके अनुमति पत्र या परवानेकी जरूरत नहीं थी ।\

जो व्यक्ति मर-मिटने, अपने प्राण न्यौछावर कर देनेका संकल्प लेकर निकला है, वह अपने हाथ में तलवार कैसे रख सकता है ? संघर्षका स्वरूप बदल देनेके बाद, सत्याग्रहका नाम छोड़ देनेके बाद या शान्ति शब्द हटा लेनेके बाद चाहे जो हो, लेकिन जबतक शान्ति, सत्याग्रह आदि इस संघर्षसे जुड़े हुए हैं, तबतक अशान्ति या असत्यका प्रचार हम कैसे कर सकते हैं ? इससे पहले जब मैंने तुम्हें नागपुर-संघर्षका समर्थन करते पाया था तब मुझे बड़ा दुःख हुआ था। लेकिन, अपने मित्रोंको भी, उनके गलती करते ही, सही रास्तेपर ले आना हमारे लिए सम्भव नहीं है। मैंने इतना भी इसलिए लिखा है कि अपने पत्र में तुमने कहा है कि नागपुरमें क्या हो रहा है, यह देखनेके लिए तुम वहाँ जा रहे हो ।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, ४-७-१९२७

८६. सन्देश : दक्षिण भारतके लोगोंको

[ २ जुलाई, १९२७][१]

दक्षिण भारतके पुरुषों और स्त्रियोंके नाम लिखे एक पत्रमें महात्मा गांधी कहते हैं :

मुझे इस बातका बड़ा दुःख रहा है कि अचानक मेरा स्वास्थ्य बिगड़ जानेके कारण में निश्चित तारीखको दक्षिण भारतका दौरा शुरू नहीं कर सकता । ईश्वरकी इच्छा रही तो मुझे उम्मीद है कि जुलाईमें किसी समय में यह दौरा शुरू कर पाऊँगा, हालाँकि मूल कार्यक्रममें अब काफी फेरफार कर दिया गया है और उसे काफी कम भी कर दिया गया है लेकिन इस बीच में उम्मीद करता हूँ कि जिन लोगोंने अबतक खादी नहीं अपनाई है, वे करोड़ों भूखे और अभावग्रस्त लोगोंकी खातिर उसे अपनायेंगे। कारण, जो कोई भी गज-भर खादी खरीदता है, वह उसपर खर्च किया सारा पैसा इस अकालग्रस्त देशके गरीब लोगोंकी जेबोंमें डालता है, जिसमें से आधेसे अधिक पैसा तो ऐसे लोगोंकी जेबोंमें जाता है जिनके लिए एक-एक पैसेका मतलब जीवनके लिए आवश्यक चीजें खरीदनेके लिए उतना पैसा और मिल जाना है ।

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दू, २-७-१९२७

  1. यह सन्देश इसी तारीखका बंगलोरसे एसोसिएटेड प्रेस ऑफ इंडिया द्वारा जारी किया गया था।