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८७. पत्र : मोतीलाल नेहरूको[१]

कुमार पार्क,बंगलोर

२ जुलाई,१९२७

प्रिय मोतीलालजी,

तो लगता है, आप बंगलोर नहीं आ रहे हैं। मुझसे मिलनेके लिए आपको दक्षिण भारतमें किसी स्थानपर आना पड़े और यहाँकी पिघला देनेवाली गर्मी बरदाश्त करनी पड़े, यह मेरी बहुत बड़ी निर्दयता होगी। लेकिन, अगर आप इस महीनेके अन्त में भी आयें तो सम्भव है, उस समय में मैसूरमें किसी आनन्ददायक स्थानपर होऊँ, क्योंकि प्रकृति भारतके मैदानी इलाकों में पूरे मैसूरपर सबसे अधिक कृपालु है ।

सरोजिनीदेवीने जब आपको पत्र लिखा तभी मुझे भी लिखा, और एक आग्रहपूर्ण तार भेजकर मुझसे कहा कि मैं न केवल उनके निवेदनका समर्थन करूँ बल्कि 'आदेश भी जारी करूँ ।' लेकिन मैं जानता था कि इस प्रस्तावपर, जो वैसे तो सदाशयतापूर्ण था किन्तु जिसे बिना समझे-बूझे रखा गया था, आप क्या कहेंगे। मैंने उन्हें लगभग उसी लहजे में लिखा जिस लहजेमें आपने लिखा और उनसे कहा कि डॉ० अन्सारी ही एकमात्र व्यक्ति हैं जो अध्यक्ष हो सकते हैं । मैंने उन्हें यह भी लिखा कि में यह बिलकुल नहीं मानता कि उनके अध्यक्ष पदपर होनेसे कांग्रेस द्वारा किये गये किसी समझौते के महत्त्वमें किसी तरहसे कोई कमी आ जायेगी । मेरे विचारसे तो अगर अन्सारी चुने गये तो कांग्रेस द्वारा कोई तर्कसम्मत समझौता कर सकनेकी सम्भावना बढ़ जायेगी ।

आपने ताराके[२] उदयके बारेमें तो मुझसे कहा ही था। अब जब चाँद[३] और तारा उग आये हैं तो घर तो बराबर रोशन रहेगा ही और हमें आशा करनी चाहिए कि अब जल्दी ही एक न एक दिन चाँद और ताराको अपना प्रकाश देने, उनकी सहायता करने सूरज भी आयेगा ही सरूप तो मुझे पत्र लिखनेकी कभी सोचती ही नहीं, लेकिन अगर वह अपने चाँद-सूरज-सितारे सबको पाल-पोसकर मातृभूमिकी सेवाके लिए तैयार कर देती है, तो में उसे इस भूलके लिये तुरन्त क्षमा कर दूंगा । आशा है, जच्चा-बच्चा दोनों धीरे-धीरे प्रगति कर रहे होंगे ।

इस बीमारीके बाद मैं कल पहली बार किसी कार्यक्रममें शामिल होऊँगा । मुझे खादी-प्रदर्शनीका उद्घाटन करना है । मेरे मुख्य वार्डरों, गंगाधरराव और राजगोपाला-

  1. मोतीलालजीके २५ जूनके पत्रके उत्तर में । इस पत्रमें मोतीलालजीने लिखा था, कि सरोजिनीके पत्रका उत्तर डाकमें डालनेके तुरन्त बाद आपका पत्र मिला । जिन्ना और महमूदाबाद के महाराजाने उन्हें अध्यक्ष-पद अन्सारी और जवाहरके बजाय मुझे सौंपनेके लिए उकसाया है।
  2. सरूप (विजयलक्ष्मी पण्डित ) की दूसरी पुत्री।
  3. सरूप की पहली पुत्री ।