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पत्र : सन्तोजी महाराजको

चारीको व्यस्त रखनेके खयालसे बंगलोर में ही इस प्रदर्शनीका आयोजन किया गया है । वे तो खादीका व्यापार बड़े जोर-शोरसे कर रहे हैं और अपने कैदीकी बीमारीसे लाभ उठाने में भी उन्हें कोई संकोच नहीं होता ।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १२५९८ ) की फोटो- नकलसे ।

८८. पत्र : वसुमती पण्डितको

बंगलोर

आषाढ़ सुदी ३ [२ जुलाई, १९२७]

चि० वसुमती,

तुम्हारा पत्र मिला । तुम आश्रम पहुँच गईं यह अच्छा हुआ । अपने स्वास्थ्यका बराबर ध्यान रखना । तुम्हारा स्वास्थ्य साथ दे और बन सके तो जिन बहनोंने भण्डारका काम अपने जिम्मे लिया है, उनकी मदद करना । मेरा स्वास्थ्य सुधरता जा रहा है। तुम्हारे अक्षरोंमें अब भी सुधारकी गुंजाइश है। ज्यों-ज्यों तुम ध्यानसे और हाथको साधकर तथा धीरे-धीरे लिखोगी त्यों-त्यों वे सुधरेंगे। गति तो बादमें अपने- आप बढ़ जायेगी । लिखाईको भी कताईके समान ही समझो। आरम्भ में कताईकी गति खूब बढ़ा लेनेके बाद मजबूत तार निकालने में कठिनाई होती है किन्तु मजबूत तार निकालना सीख लेनेपर अभ्याससे गति तो बढ़ ही जाती है ।

बापूकेआशीर्वाद

गुजराती (सी० डब्ल्यू ० ५८७ ) की फोटो- नकलसे ।

सौजन्य : वसुमती पण्डित

८९. पत्र : सन्तोजी महाराजको

बंगलोर

आषाढ़ सुदी ३ [२ जुलाई, १९२७][१]

श्री सन्तोजी महाराज,

मैंने आपके प्रश्नोंको यत्नपूर्वक सँभालकर रख छोड़ा था और ईश्वरकी कृपासे अब उनके उत्तर देनेका प्रयत्न कर रहा हूँ । आपके प्रश्न अपने उत्तरके साथ ही भेज रहा हूँ जिससे आपको उन्हें याद नहीं करना पड़ेगा और मुझे उन्हें यहाँ फिरसे लिखना नहीं पड़ेगा। इन सब प्रश्नोंपर मैने क्रम संख्या डाल दी है जिससे किसी प्रकारकी गड़बड़ होनेकी सम्भावना न रहे।

  1. गांधीजी सन् १९२७ में इस दिन बंगलोर में थे ।