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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रयत्न कर रहा हूँ किन्तु यह सम्भव है कि इस देहमें वह योग्यता मुझे न मिले और अपने कर्मोंके फलस्वरूप उसे पाये बिना ही मेरी मृत्यु हो जाये ।

आपके सारे प्रश्नोंके उत्तर पूरे हो गये । इनके सिवा आपको कुछ और पूछना हो तो अवश्य पूछें। इन उत्तरोंमें से कुछमें या शायद सबमें आपको एक प्रकारका निश्चयका स्वर जान पड़ेगा । इसे आप धृष्टता या अभिमान न समझें। मैंने अपनी बात जिस तरह लिखी है उस तरह न लिखूं तो मुझे लगता है कि मैं असत्यका दोषी ठहरूँगा क्योंकि तब उसका मतलब यह होगा कि जिस चीजको मैं मानता हूँ उसे मैं नम्रताकी अपनी गलत धारणाके कारण छिपा रहा हूँ । अतः यदि आपको मेरी यह निश्चयात्मकता अनुचित जान पड़े तो कृपया इस अविनयको क्षमा करें।

पूज्य मालवीयजी महाराज यही हैं। उनके साथ अनेक प्रकारको धर्मवार्त्ता होती रहती है । मैं उन्हें आपकी इच्छा जरूर बता दूंगा ।

आपका,

मोहनदास गांधी

गुजराती (एस० एन० १२३२३) की फोटो - नकलसे ।

९०. निष्कलंक मजदूरी

वीरमगाम, लखतर आदि प्रदेशोंमें कपास पैदा होती है और यद्यपि वहाँ वाष्प- यन्त्रोंका प्रवेश हो गया है मगर अभी मानव-यन्त्रोंके बिना काम नहीं चल पाता, इसलिए डोंडीसे कपास चुनने इत्यादिकी क्रिया स्त्री-पुरुषों द्वारा ही की जाती है। डोंडीसे कपास चुनना एक-दोका काम नहीं है; उसके लिए कई आदमी चाहिए। इसलिए यदि यन्त्र-युगका प्रभाव बढ़ता रहा तो डोंडीसे कपास चुननेके लिए यहाँ भी किसी दिन यन्त्रका उपयोग होगा ही । पर हालमें तो सौभाग्यसे या दुर्भाग्यसे - जो जिसकी प्रकृतिके अनुकूल हो वह वैसा मान ले - कपास चुननेकी क्रिया स्त्री-पुरुष ही करते हैं, इसलिए मैंने यह काम करनेवाले एक भाईसे कई प्रश्न पुछवाये थे । उक्त प्रश्नोंके उत्तरमें वे भाई लिखते हैं :

इस प्रदेशमें कपास चुननेका काम न सिर्फ सार्वजनिक और निष्कलंक गिना जाता है बल्कि तन्दुरुस्ती सुधारनेवाला और समयका सदुपयोग करनेवाला भी माना जाता है। इस कारण सम्पन्न तथा गरीब घरके लड़के और स्त्रियाँ और कभी-कभी पुरुष भी कपास चुनते हैं। एक आदमी रोज एकसे डेढ़ मन- तक कपास चुन सकता है और ४० सेरके मनके चार आनेके हिसाब से सामान्यतः उसे मजदूरी मिलती है मगर कभी-कभी मजदूरी छह या आठ आनेतक भी बढ़ जाती है। मेहनतानेके जो पैसे आते हैं वह स्त्रियोंके निजी पैसे माने जाते हैं और कई कुटुम्बोंमें ये पैसे निर्वाहका साधन भी हैं। कितने ही कुटुम्ब तो