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एक विद्यार्थीकी परेशानी

आधे सालकी गुजरके लायक पैसे इसीके द्वारा कमा लेते हैं और एक प्रकारसे कहा जा सकता है कि इस धन्धे में पूरा कुटुम्ब हाथ बंटाता है।

५०-६० वर्ष पहले अगर मेरी तरह किसीने रुईकी कताईके सम्बन्धमे प्रश्न पूछा होता तो उसे अक्षरश: ऐसा ही जवाब मिला होता । क्योंकि उस वक्त चरखा गरीबीकी नहीं किन्तु कुलीनताकी निशानी था और जिस प्रकार आज कपास चुनने का काम यद्यपि गरीबोंके निर्वाहका साधन है तथापि धनी लोग भी उसे धर्म समझकर करते हैं और उसका पैसा लेने में भी संकोच नहीं करते, उसी प्रकार उस समय श्रीमन्त भी निःसंकोच धर्म समझकर कातते थे। और जबतक श्रीमन्तोंने यह धन्धा नहीं छोड़ा तबतक गरीब सुरक्षित थे और कातनेके धन्धेका नाश नहीं हुआ था । ऐसे सार्वजनिक धन्धे जिस हदतक धन्धे हैं, उसी हदतक धर्म भी है। उनमें जबतक श्रीमन्त लगे रहते हैं, तभीतक वे चलते हैं क्योंकि ऐसे धन्धोंमें करोड़पति बननेका अव- सर नहीं आ सकता, उनमें सट्टेकी गुंजाइश नहीं होती। ऐसे बंधे तभी टिकते हैं जब सारे लोक-समुदायके कल्याणका विचार किया जाता है । परमार्थकी ओरसे दृष्टि हट जाती है तो सभी करोड़पति बननेके लिए बेचैन हो जाते हैं और इस प्रकारके धन्धे ढूंढ़ने लगते हैं जिनसे करोड़पति बनना सम्भव हो । मनुष्य ऐसे पापपूर्ण और अधोगतिको पहुँचानेवाले प्रलोभनमें न फँसे, इसीलिए वर्णाश्रम धर्मकी खोज हुई थी और उसे हिन्दू धर्मने अपनाया। इस धर्मका तो आज नाममात्र ही रह गया है; उसका मूल स्वरूप नष्ट हो गया है । जहाँ देखिए वहाँ उसका कुरूप ही नजर आता है । धन्धोंका नियमन करनेके लिए जिस धर्मकी खोज हुई थी, वह अब रोटी-बेटीके व्यवहारमें परि- मित हो गया है । किसे और कैसे समझाया जाये कि चरखेके पुनरुद्धार में ही वर्णाश्रम- का, शुद्ध धर्मका और यदि ऐसा कहने में अविनयका दोष न हो तो, सभी धर्मोका पुनरुद्धार है ?

[ गुजरातीसे ]

नवजीवन, ३-७-१९२७

९१. एक विद्यार्थीको परेशानी

एक सरलचित्त विद्यार्थी लिखता है :

मेरे पत्रमें खादी सेवक बननके बारेमें आपने जो कुछ लिखा, उसे मैंने ध्यानसे पढ़ा। सेवा करनेका तो इरादा है ही। मगर अभी मुझे यह सोचना बाकी है कि खादी-सेवक ही बनूँ या और किसी तरह सेवा करूँ। अभी मुझे ऐसा नहीं लगता कि खादीके उद्धारमें हो आत्माको उन्नति समाई हुई है। अभी तो मैं हिन्दुस्तानको आर्थिक हालत सुधरे और वह स्वतन्त्र हो सके, इस- लिए कातना जरूरी समझकर समाजके प्रति अपने धर्मका पालन करने लिए ही कातता हूँ । आखिरकार जो सेवा मेरे लिए सबसे अच्छी सिद्ध होगी, में वैसा ही करूँगा। अभी तो मेरा यही उद्देश्य है कि जितना ज्ञान प्राप्त कर सकूँ, उतना ज्ञान प्राप्त करके सेवा करनेके लिए तैयार हो जाऊँ ।