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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ब्रह्मचर्य पालन के बारेमें तो मैं लिख ही क्या सकता हूँ ? ईश्वरसे यही प्रार्थना है कि वह ब्रह्मचर्य का पालन करनेकी महत्त्वाकांक्षा पूरी करनेकी शक्ति दे ।

मेरी समझमें यह नहीं आता कि आप पाठशालाओं में ज्ञान और उद्योग दोनोंको एक ही साथ बराबरीका स्थान कैसे देते हैं। मुझे यही लगा करता है कि दोनों काम एक साथ करनेसे हम एक भी काम अच्छी तरह नहीं कर सकते ।

हमें उद्योग तो सीखना ही है। मगर क्या यह अच्छा न होगा कि पढ़ाई पूरी करनेके बाद उद्योग सिखाया जाये ? कताईको मैं उद्योगमें नहीं गिनता । काना समाजके प्रति हरएक आदमीका धर्म है और इसलिए हरएकको कातना चाहिए। मगर मुझे लगता है कि दूसरे उद्योग जैसे बुनाई, खेती और उससे सम्बन्धित बढ़ईगिरी वगैरह - पढ़ाईके बाद किये जा सकते हैं। इनमें हरएक काम एक स्वतन्त्र विषय है । एकाध साल इसके लिए दे दिया जाये तो काफी होगा ।

मैं आज अपनी हालतपर विचार करने बैठूं, तो मुझे लगता है कि दोनों चीजें बिगड़ रही हैं। तीन घंटे उद्योग करके फालतू वक्तमें कातना और एक बाहरके स्कूल में पढ़ाये जानेवाले विषयोंके बराबर ही विषय पढ़ना, स्वाध्याय करना और जरूरी कामोंमें शरीक होना सचमुच मुश्किल बात मालूम होती है।

बच्चों की पढ़ाई तो कम की ही नहीं जा सकती। इनके लिए सारे विषय सीखना जरूरी हो है । तब इतने विषय पढ़ते और स्वाध्याय करते हुए बच्चों- पर हम ज्यादा बोझ कैसे डालें ? बच्चे दिया हुआ काम भी अच्छी तरह न कर सकें, तो फिर स्वाध्याय कर ही कैसे सकते हैं? मैं देखता हूँ कि जैसे-जैसे पढ़ाई आगे बढ़ती जाती है, वैसे-वैसे स्वाध्याय बढ़ाना जरूरी होता जाता है, और इतना वक्त निकाला नहीं जा सकता ।

ये विचार मैंने शिक्षकों को भी बताये हैं । इस सम्बन्धमें चर्चा भी हुई है । मगर इससे मुझे अभी सन्तोष नहीं हुआ। मुझे ऐसा लगता है कि वे अभी हमारी मुश्किल नहीं समझ सके। क्या आप इस विषयपर विचार करके मुझे समझाने की कृपा करेंगे ? इस पत्र में दो सवाल बहुत जरूरी हैं । यह तो पाठक समझ ही सकता है कि यह पत्र मेरे पत्रके जवाबमें है । इसका उत्तर निजी तौरपर देनेके बजाय यदि 'नवजीवन' द्वारा दिया जाये तो यह अन्य विद्यार्थियोंके लिए भी उपयोगी सिद्ध होगा; यह सोचकर मैंने उक्त पत्र तीन महीनेसे सँभालकर रख छोड़ा था ।

आत्मोन्नति और समाज-सेवाके धर्ममें जो भेद इस पत्र में किया गया है, वैसा भेद हिन्दुस्तान में बहुत लोग करते हैं। मुझे ऐसा फर्क करनेमें विचार-दोष दीखता है। मैं यह मानता हूँ और यही मेरा अनुभव है कि जो चीज आत्मोन्नति के खिलाफ है,