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एक विद्यार्थीकी परेशानी

वह समाजसेवाके भी खिलाफ है। सेवाके कामके जरिये ही आत्माकी उन्नति हो सकती है । सेवा कार्यका अर्थ है यज्ञ । जो सेवा आत्मोन्नति में बाधक है वह त्याज्य है ।

ऐसा कहनेवालोंका भी एक पत्थ है कि झूठ बोलकर सेवा हो सकती है। लेकिन यह तो सभी मानते हैं कि झूठ बोलनेसे आत्माकी अवनति होती है। इसलिए झूठ बोलनेसे होनेवाली सेवा त्याज्य है। सच बात यह है कि यह खयाल भी एक भ्रम ही है कि झूठ बोलनेसे सेवा हो सकती है। इसका नतीजा थोड़ी देरके लिए भले ही समाजको फायदेमन्द मालूम हो, लेकिन यह बताया जा सकता है कि उससे हानि ही होती है ।

इसके विपरीत, चरखेकी प्रवृत्तिसे समाजको फायदा होता है, दुनियाको फायदा होता है, इसलिए आत्माको फायदा होता है। इसका मतलब यह नहीं है कि हरएक कातने- वाला आत्मोन्नति कर लेता है । जो दो पैसे कमानेके लिए कातता है, उसे उतना ही फल मिलता है । जो आत्माको पहचाननेके लिए कातता है, वह उसके जरिये मोक्ष भी पा सकता है । जो भक्तिभावसे पानी पिलाता है, वह भी मोक्ष लायक बन जाता है । जो दंभसे या रुपयेके लिए चौबीसों घंटे गायत्री मन्त्र जपते हैं, उनमें से पहलेकी अवनति होती है और दूसरा रुपया पाने तक फल पाकर अटक जाता है । जहाँ सर्वोत्तम हेतु और सर्वोत्तम काम होता है वहीं मोक्ष होता है ।

असल में यह जाननेके लिए ही कि सर्वोत्तम हेतु कौन-सा है और सर्वोत्तम कार्य क्या है, ब्रह्मज्ञानकी जरूरत होती है । आत्मोन्नतिके खयालसे खादी सेवाके लिए योग्यता पैदा करना छोटी-मोटी बात नहीं है। आत्मार्थी खादी सेवकको राग-द्वेषसे मुक्त होना चाहिए। इसमें सब कुछ कह दिया गया है। निःस्वार्थ भावसे, सिर्फ गुजारे लायक मिल जानेपर सन्तुष्ट रहकर, रेलवे स्टेशन से दूर छोटेसे गाँव में प्रतिकूल परिस्थितिमें अटल श्रद्धापूर्वक आसन जमाकर बैठनेवाला एक भी खादी-सेवक अभीतक तो हमें मिला नहीं। ऐसा खादी सेवक संस्कृत जानता होगा, संगीत जानता होगा और सब धर्मोको जाननेवाला होगा । वह जितनी कलाएँ जानता होगा, उन सबका वहाँ उपयोग कर सकता है। यदि वह चरखा शास्त्रके सिवा और कुछ न जानता हो, तो भी सन्तुष्ट रहकर सेवा कर सकता है ।

मुद्दतोंका आलस्य, मुद्दतोंके वहम, मुद्दतोंकी भुखमरी और मुद्दतोंका अविश्वास, इस सारे घोर अन्धकारको दूर करनेके लिए तो मोक्षके दरवाजेतक पहुँचे हुए तपस्वियोंकी जरूरत है। इस धर्मका थोड़ा-सा पालन भी बड़े भारी भयसे बचाने- वाला है । इसलिए वह आसान है । लेकिन उसका पूरा पालन तो मोक्षार्थीकी तपस्याके समान ही कठिन है ।

मेरे कहने का यह मतलब नहीं कि कोई अपनी पढ़ाई छोड़कर अभीसे खादी- सेवा करने लग जाये। मगर इसका यह अर्थ जरूर है कि जिस विद्यार्थी में हिम्मत, बल और विश्वास हो, वह आज ही से पक्का निश्चय कर ले कि मुझे पढ़ाई खत्म करके खादी-सेवक बनना है । वह ऐसा करेगा तो आजसे ही उसकी खादी सेवा शुरू हो जायेगी, क्योंकि वह अपने सारे विषयोंका चुनाव सिर्फ इस सेवाकी योग्यता हासिल करनेके लिए करेगा ।