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भाषण : बंगलोरकी खादी-प्रदर्शनीके उद्घाटन के अवसरपर

है। अब तो आपके यहाँ बंगलोर में भी एक हिन्दी प्रचार कार्यालय खुल गया है, और चूंकि मैं यह अपेक्षा रखता हूँ कि आप खादीकी ही तरह हिन्दी के सम्बन्धमें भी तमिलनाडु और आन्ध्र देशके स्तरतक पहुँच जायेंगे, इसलिए मुझे उम्मीद है कि आप निकट भविष्यमें इस कमीको पूरा कर लेंगे। अगर अभी मैं अपने सामने सिर्फ मुसलमान भाइयोंको ही उपस्थित देखता तो, मेरी समझमें में हिन्दीमें बोल सकता था। वे राष्ट्र-भाषाकी प्रतिष्ठाको बनाये हुए हैं, किन्तु दक्षिणके हिन्दू इस मामले में काफी पीछे हैं। मुझे उम्मीद है कि यहाँ मैसूर में आप लोग अपने मुसलमान भाइयोंसे अच्छी होड़ करेंगे और हिन्दी - ज्ञानकी दृष्टिसे अपनी कमी पूरी करेंगे। इन दो शब्दों के साथ मैं अपने मित्रसे कन्नड़ अनुवाद पढ़नेका अनुरोध करूँगा ।

जब महात्माजीके अभिभाषणका कन्नड़ अनुवाद पूरा पढ़ा जा चुका तो उसके बाद श्री च० राजगोपालाचारीने गांधीजीका निम्नलिखित अंग्रेजी अभिभाषण बड़े ही स्पष्ट स्वरमें पढ़ा :

भाइयो, इस मनोरम नगरमें आप सबसे मिलकर और अपने बीच वयोवृद्ध नेता पूजनीय पंडित मदनमोहन मालवीयजीको पाकर मुझे अत्यन्त हर्षका अनुभव हो रहा है। अपने हिन्दू संस्कारके कारण मुझे ऐसे किसी भी समारोह में प्रमुखके रूपमें हिस्सा लेने में बड़ी परेशानी होती है, जिसमें वे उपस्थित रहते हैं। क्योंकि जबसे मैं अपने प्यारे देशमें लौटकर आया हूँ तबसे बराबर उन्हें अपने अग्रजके रूपमें देखता आया हूँ । लेकिन, जिस चीजको मैं कर्त्तव्यका आग्रह समझता हूँ, उसके कारण किसी हदतक इस परेशानीपर काबू पा लेता हूँ ।

अपनी बीमारीके बाद मुझे सार्वजनिक मंचपर आनेकी इजाजत आज पहले-पहल मिली है। इस अवसरपर में मैसूरके महाराजा साहब और जनता दोनोंको धन्यवाद देता हूँ । पूर्ण रूपसे स्वस्थ होनेके लिए मैं यहाँ काफी दिनोंसे विश्राम कर रहा हूँ और इस पूरे समय में महाराजा साहब और यहाँकी जनता, दोनों मुझे बहुत स्नेह देते रहे हैं, मेरा बहुत खयाल रखते रहे हैं । आपके उदात्त आतिथ्यने बीमारीमें भी एक आकर्षण भर दिया है। लेकिन, मुझे यह देखकर बड़ा दुःख हुआ कि मेरे मित्रोंने मेरी बीमारीसे नाजायज फायदा उठानेकी कोशिश की। मैंने देखा कि खादीके लिए आपका सहयोग समर्थन प्राप्त करनेके उद्देश्यसे जारी की गई अपीलमें इन मित्रोंने आपसे कहा कि अगर आप चन्दा देकर तथा अपनी पोशाकके लिए खादीको अपनाकर उसे प्रोत्साहन देंगे तो मैं जल्दी अच्छा हो जाऊँगा । यह मेरी बीमारीका नाजायज फायदा उठाना है। मैं तो आपसे यह कहूँगा कि आप अपने मनसे इस खयालको बिलकुल निकाल दें। अगर खादी आपकी बुद्धिको नहीं जँचती और यदि राष्ट्रके आर्थिक जीवन में इसका कोई स्थान नहीं है तो मेरे मोहके बावजूद इसे बढ़ने नहीं देना चाहिए । जहाँ बड़े-बड़े राष्ट्रीय हितोंका सवाल हो, वहाँ व्यक्तिगत स्नेह-सौहार्दको बाधक तत्त्व मानते हुए उनका कोई खयाल नहीं करना चाहिए। और अगर मैं इतना सुकुमार हो गया हूँ कि अपनी सनक और भ्रान्त धारणाओं या शायद गलत कार्योंके