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भाषण : बंगलोरकी खादी-प्रदर्शनीके उद्घाटन के अवसरपर

तैयार करनेके लिए इस साल पचास हजार कातनेवालोंने काम किया । इन कातनेवालोंने कताईमें जो समय दिया उस समय उनके पास आमदनीका कोई और जरिया या कोई अन्य धंधा नहीं था। जिसने जितना समय दिया और जितनी कुशलतासे अपना काम किया उसके अनुसार उसे प्रतिदिन एक पैसेसे लेकर दो आने तककी आमदनी हुई। पचास हजार स्त्रियाँ सिर्फ उतनी मजदूरी पानेके लिए, जो हमें शायद बहुत तुच्छ लगे, इस कामको करनेके लिए उत्सुक थीं, यह तथ्य अपने-आपमें इस बातका एक तरहसे पर्याप्त प्रमाण है कि हाथ - कताई आर्थिक दृष्टिसे महत्त्वहीन, अलाभ- कर या अव्यावहारिक चीज नहीं है । कई स्थानोंपर ऐसा देखा गया है कि स्त्रियाँ रुई प्राप्त करनेके लिए चार-चार मील चलकर जाती हैं। हाथ कताईको केन्द्र बनाकर कई अन्य धंधे भी खड़े किये गये हैं । बुनकरों, धोबियों, रंगरेजों, छपाई करनेवालों और धुनियोंको, जो अपने धन्धे छोड़ चुके थे या छोड़ते जा रहे थे, हाथ-कताईके पुनरुद्धार में आशाकी एक नई किरण दिखाई दी है। दस-दस कातनेवालों पर एक-एक नया बुनकर और धुनिया खड़ा हो जाता है और ये बुनकर और बुनिये रोजाना चार आनेसे लेकर आठ आनेतक कमा लेते हैं । इस प्रकार १०० से लेकर १५० रुपये तक मासिक वेतन पानेवाले न्यूनाधिक पढ़े-लिखे लोगोंका एक पूरा दल १,५०० गाँवोंकी सेवा कर रहा है । इस राष्ट्रीय सेवा संगठनके जरिये कमसे कम ऐसे १,००० नौजवान और कुछ युवतियाँ भी सम्मानके साथ जीविकोपार्जन करती हैं । कातनेवालों और दूसरे कार्यकर्त्ताओंमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, तथाकथित अस्पृश्य, मुसलमान, ईसाई, पारसी, सिख बल्कि वास्तव में सभी धर्मों और जातियोंके आदमी शामिल हैं । वैतनिक कार्यकर्त्ताओंके अलावा, बहुत-से अवैतनिक कार्यकर्ता भी ग्रामोद्धारके इस कार्य में लगे हुए हैं। सतीशचन्द्र दासगुप्त और प्रफुल्लचन्द्र घोषके रूपमें बंगालने आचार्य रायके दो सर्वाधिक तेजस्वी शिष्योंको इस सेवाके हेतु समर्पित कर दिया है। सतीशचन्द्र दासगुप्तने ही आचार्य रायकी रसायनशाला खड़ी की थी और प्रफुल्लचन्द्र घोष सरकारी टकसालमें सिक्कोंके सहायक परीक्षकका काम करते थे । इन दोनोंने अपनी सेवाएँ खादीको अर्पित करनेके लिए आर्थिक दृष्टिसे अत्यन्त लाभदायक उक्त पद छोड़ दिये। बहुत-से नामी वकीलों, बल्कि डाक्टरों तकने, जिनमें से कुछको आप व्यक्तिगत रूपसे जानते हैं, अपने-अपने धंधे छोड़कर इस कामको अपना लिया है। और अब धीरे-धीरे व्यापारी वर्गकी समझमें यह बात आ रही है कि यह एक ऐसी सेवा है जो उनसे इसमें अपनी व्यापार-बुद्धि लगानेकी अपेक्षा रखती है। अब शायद आप यह समझ रहे होंगे कि इस हाथ कताई आन्दोलनको मैंने आधुनिक युगका सबसे बड़ा सहकारी प्रयत्न क्यों कहा है। पिछले छः सालमें जो प्रगति हुई है वह यद्यपि हमें इस क्षेत्रमें जितना कुछ करना है उसको देखते हुए नगण्य ही है, फिर भी यदि वह भविष्यका संकेत देती है और ईश्वरकी कृपा हुई तो वह दिन दूर नहीं जब हम देखेंगे कि आज हमारे जो गाँव टूटकर बिखरते नजर आ रहे हैं. वे ईमानदारी और धैर्यके साथ निरन्तर उद्यमरत रहनेवाले लोगोंके बसेरे बन गये हैं ।

प्रदर्शनीको देखकर आप उन तमाम प्रक्रियाओंको समझ जायेंगे जिनमें से गुजर- कर रुई आपके पास खादीके रूपमें पहुँचती है। क्योंकि आप वहाँ ओटाई, धुनाई,