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भाषण : बंगलोरकी खादी-प्रदर्शनीके उद्घाटन के अवसरपर

देशपाण्डेने समारोहके आरम्भ में ही दिये अपने भाषण में मुझे यह विधि सम्पन्न करनेके लिए आमन्त्रित करते हुए आप लोगोंका ध्यान उस जबरदस्त सहायताकी ओर आक- र्षित किया जो इस आन्दोलनको इस राज्यसे और विशेषकर इसके उद्योग विभागसे मिल रही है । इसने ऐसे बहुत-से चरखे तैयार किये हैं। प्रदर्शनी - प्रांगण में आप तरह-तरह के चरखे देखेंगे। वहाँ आपको पुराने ढंगके चरखे भी देखनेको मिलेंगे, जो न्यूनाधिक जीर्ण-शीर्ण अवस्थामें मैसूरमें आज भी पाये जाते हैं और साथ ही आपको यह भी देखनेको मिलेगा कि इन छः वर्षोंमें चरखा किस विकास क्रमसे गुजरा है । अभी मैं आपके सामने जिस चरखेका अनावरण करूँगा वह इस विकास क्रमकी कोई श्रेष्ठतम उपलब्धि नहीं है । लेकिन, हमने सोचा कि सबसे पहले मैसूर में बनी कोई चीज ही आपके सामने पेश करना अवसरके उपयुक्त होगा ।

आपको प्रदर्शनीके प्रांगण में ले जानेके लिए आपका नेतृत्व करनेकी विधि पंडित मदनमोहन मालवीय सम्पन्न करेंगे। मुझे प्रदर्शनी प्रांगण से गुजरनेकी परेशानी न उठानी पड़े, इसलिए उन्होंने कृपापूर्वक मेरी खातिर यह काम करना स्वीकार कर लिया है । सांयकाल ५ -३० से इस समारोहकी कार्यवाहीका संचालन भी वही करेंगे। उस समय वे प्रदर्शनीके प्रांगण में जो कुछ देख चुके होंगे, उसके विषय में आपको अपना विचार बतायेंगे और इन छः वर्षोंमें उन्होंने खादीके सम्बन्धमें जो कुछ जाना-समझा है उसके बारेमें भी बतायेंगे। मुझे उम्मीद है कि उन्हें आपको जो भी सन्देश देना होगा, उसे सुननेके लिए आप लोग अवश्य पधारेंगे। जब वे नेताओंको लेकर प्रदर्शनी प्रांगण में जायें, उस समय आप लोग उनके आसपास भीड़ लगानेकी कोशिश न करें, अन्यथा प्रदर्शनी में उन्हें जिन चीजोंका अध्ययन करना है उनका अध्ययन करना वास्तव में सम्भव नहीं होगा। असल में यह प्रदर्शनी उन लोगोंके अध्ययनके लिए ही आयोजित की गई है जो यह समझना चाहते हैं कि खादी आन्दोलनका उद्देश्य क्या है और वह कहाँतक सफल हो पाया है । यह कोई ऐसा प्रदर्शन नहीं है जिसे प्रदर्शनी- प्रांगणसे बाहर जाते ही भुला दिया जाये। यह कोई सिनेमा नहीं है । यह वास्तव में वह नर्सरी है जहाँ कोई जिज्ञासु मानवताका प्रेमी, देशका प्रेमी आकर अपनी आँखोंसे सबकुछ देख-परख सकता है। मैं इस आन्दोलनकी उपादेयताके विषयमें शंका रखनेवाले लोगोंको आमन्त्रित करता हूँ कि वे वहाँ जायें और न केवल कुछ क्षणोंतक बल्कि घंटोंतक सब-कुछ ध्यानपूर्वक देखें और सोचें । मैं उन्हें विश्वास दिलाता हूँ कि फिर तो वे स्वयं ही पायेंगे कि उनका वहाँ जाना व्यर्थ नहीं हुआ, और हो सकता है, उसके बाद उनकी सारी शंकाएँ भी मिट जायें। मैं निष्पक्ष आलोचकोंको भी वहाँ जानेको निमन्त्रित करता हूँ । मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि वे वहाँ बहुत-सी कमियाँ देखेंगे, रेखाचित्रोंको वे कलात्मक ढंगसे तैयार किया गया नहीं पायेंगे, लेकिन वे यह अवश्य देखेंगे कि उन चित्रोंके भीतरसे हृदय बोलता है । उनमें आप ऐसे तथ्य और आँकड़े देखेंगे जिनका संग्रह उन अध्येताओंने किया है जो सिर्फ सत्यकी सेवा करना चाहते हैं । आप वहाँ देखेंगे कि तथ्योंको कम करके तो बतलाया गया है, लेकिन बढ़ाकर बिल्कुल नहीं बतलाया गया । इन्हीं शब्दोंके साथ अब में प्रसन्नता-