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पत्र: मीरबहनको

आखिरकार सवाल हिन्दी सीखनेके सबसे अच्छे तरीकेको चुननेका ही तो है । और जो तरीका तुम्हें ठीक लगे वही सबसे अच्छा तरीका है, अन्य कोई नहीं ।

सस्नेह,

बापू

[ पुनश्च : ]

उद्घाटन समारोह बिना किसी कठिनाईके कल सम्पन्न हो गया। इसमें मुझपर जितना भार पड़ा, उसे में निभा गया। समारोह के बाद डॉक्टर लोग आये और उन्हें यह जानकर सन्तोष हुआ कि नब्जकी गतिमें कोई परिवर्तन नहीं है । मुझे उम्मीद है कि यहाँसे जानेके बाद तुम्हें कब्जकी शिकायत नहीं रह गई होगी ।

बा०

[ पुनश्च : ]

इस पत्रको डाक में डालने के लिए देनेके तुरन्त बाद मुझे तुम्हारा सुन्दर पत्र[१], जिसकी मैं प्रतीक्षा कर रहा था, मिला। इसे पढ़ना पूर्णतया सुगम है । गलतियाँ बहुत कम हैं । पत्र लिखती रहना ।

बा०

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू ० ५२४३ ) से ।

सौजन्य : मीराबहन

९५. पत्र : मीराबहनको

मौनवार [४ जुलाई, १९२७][२]

चि० मीरा,

सोमवारका खत तो मैंने साबरमती भेजा है। परंतु यदि खत पहोंचनेके पहले पहोंच गई हय तो सोमवारकी डाक वर्धा भी खाली न जाय इस हेतुसे यह खुश खत भेजता हूं ।

तुमारे खतकी आज उमीद थी परंतु नहि मीला। कल तो आना ही चाहीये।

बापूके आशीर्वाद

[ पुनश्च : ]

गभराना नहि । साबरमतीका खत इंग्रेजीमें है ।

[ पुनश्च : ] तुम्हारा हिंदी खत अबी मीला ।

सी० डब्ल्यू ० ५२४२ से ।

सौजन्य : मीराबह्न

३४-८

  1. यह पत्र हिन्दीमें था
  2. डाककी मुहरसे।