पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मुझपर कोई बोझ न पड़े। चिकबल्लापुरमें जो कुछ हुआ, वह उनके लिए भी एक खासा सबक था।

हृदयसे आपका,

अंग्रेजी (एस० एन० १९७८६ ) की माइक्रोफिल्मसे ।

१०१. पत्र : मणिलाल और सुशीला गांधीको

आषाढ़ सुदी ६, [५ जुलाई, १९२७ ][१]


चि० मणिलाल और सुशीला,

तुम्हारा तार मिला था। मैंने तुम्हें उसका जवाब भेजा था, मिल गया होगा । जवाब मिलनेके पहले ही मेरा पत्र भी तुम्हें मिल गया होगा । किन्तु मैंने तुम्हें तारसे जवाब इसलिए दिया कि उससे तुम दोनों और विशेषकर सुशीलाको ज्यादा शान्ति मिलेगी। यदि मणिलाल वहाँ अकेला ही होता तो मैं तारसे जवाब देने में पैसा खर्च न करता और उसने तार देकर ऐसा खर्च किया इसके लिए उसे उलाहना भी देता । किन्तु सुशीला परदेशमें है, इसके पहले वह परदेश में कभी रही नहीं और उसे मेरे पत्र पानेकी इच्छा रहती है, इस कारण तार देना उचित माना । तुम दोनोंको मेरा पत्र पाकर खुशी होती है यह जानकर तो मैं प्रसन्न ही होता हूँ किन्तु इसके साथ यह आश्वासन भी दे दूं कि जब तुम्हें मेरा पत्र न मिले तो तुम्हें ऐसा नहीं समझना चाहिए कि मैंने उपेक्षा या आलस्यके कारण पत्र नहीं लिखा । काम ज्यादा होनेके कारण और डाक उसी दिन रवाना हो रही है, यह याद न रहनेके कारण पत्रका लिखना रह जाये तो भले रह जाये। यदि मैं बीमार होऊँ तब तो तुम्हें किसी-न-किसी तरह इसकी खबर मिल ही जायेगी। किन्तु अब मैं पत्र लिखने में ज्यादा सावधानी रखूंगा ।

सुशीलाको घरकी आसक्ति भूलनी ही है। यह तो ठीक है कि हमें अपने माँ- बापकी याद हमेशा आनी ही चाहिए किन्तु हम सदा उनकी गोदमें तो नहीं रह सकते । लड़केके लिए यह सम्भव नहीं है । तब लड़कीके लिए तो क्योंकर सम्भव हो सकता है ? उसका घर तो उसके पतिके साथ ही है । इसलिए सुशीलाका घर तो वहाँ है जहाँ मणिलाल है ऐसा समझकर उसे सावित्रीका आदर्श अपनाना है। स्वयं प्रलोभनोंसे बचना है और मणिलालको बचाना है । तुम्हारे विवाहकी सार्थकता इस बातमें है कि तुम वहाँ अनेक प्रलोभनोंके बीच रहते हुए भी सादगी, सत्य, दया और देशप्रेमका पालन करती रहो। अपनी मर्यादामें रहो और एक-दूसरेके शरीर तथा एक-दूसरेके सदाचारकी रक्षा करते रहो ।

  1. महादेव देसाईको हस्तलिखित डायरीके अनुसार ।