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पत्र : मणिलाल और सुशीला गांधीको

सुशीलाका वजन बढ़ा है किन्तु ऐसा नहीं लगता कि उसी अनुपातमें उसके शरीरकी शक्ति भी बढ़ी है। शरीरकी शक्ति बढ़ानेका एक ही मार्ग है - जितनी आसानीसे हज़म हो उतनी सात्त्विक खुराक लेना, खुली हवा में शरीर सह सके उतनी कसरत करना तथा यथासम्भव पशु-क्रीड़ासे बचते रहना। ऐसी मानसिक क्रीड़ा भी शरीरको कितना क्षीण करती है, इसका मैं स्वयं एक सजीव उदाहरण हूँ । ३० वर्षकी आयुतक तो मैं सावधान ही नहीं रहा । उसका फल आज भी भोग रहा हूँ। मेरा शरीर अच्छा कहा जा सकता है, बीमारियाँ मैंने कम भोगी हैं तो भी यदि में जल्दी चेत गया होता तो मैं जानता हूँ कि मेरा शरीर वज्रके समान होता और मेरी सेवा करनेकी शक्ति भी बहुत ज्यादा होती। मुझे जगानेवाला या जाग्रत रखनेवाला कोई था ही नहीं किन्तु तुम दोनोंको जगाने और जाग्रत रखनेवाला में हूँ। मैं चाहूँगा कि मेरे अनुभवोंसे तुम शिक्षा लो ।

मेरी तबीयत ठीक रह रही है। अभी यहाँ खादी-प्रदर्शनी हो रही है और चरखा संघकी समितिकी बैठक भी चल रही है इसलिए जमनालालजी, मीठुबह्न, जमनाबहन, मगनलाल, केशु, अनसूयावहन, शंकरलाल आदि आये हुए हैं। एक-दो दिन में घोंसला सुना हो जायेगा ।

अपना पत्र तुम अमरेली नाहक ही भेजते हो । पत्रके ऊपर 'व्यक्तिगत' लिख दिया करो तो कोई उसे पढ़ेगा नहीं । किन्तु तुम क्यों चाहते हो कि आश्रम में कोई भी व्यक्ति तुम्हारा कोई पत्र न पढ़े। इस इच्छामें तो कोई हर्ज नहीं है कि जिस पत्र में तुमने अपनी नैतिक कठिनाइयोंके सम्बन्धमें प्रश्न किये हों उन्हें कोई न पढ़े किन्तु सामान्य पत्रोंमें तो ऐसा क्या होता है जिससे तुम चाहो कि उन्हें कोई पढ़े नहीं ।

जमनालालजीके पास तुम्हारी जो तसवीर आई है वह हम सब लोगोंने देखी है । तुमने मुझे अथवा बा को भी भेजी है किन्तु वह अभी हमारे हाथ नहीं आई है । कहीं रास्तेमें होगी। किस पतेपर भेजी हैं इसे जाने बिना पूछताछ करनेमें समय बेकार जाया होता है।

'गीताजी 'का अनुवाद तुम्हें नियमपूर्वक मिल रहा होगा ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती (जी० एन० ४७२४) की फोटो - नकलसे ।