पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१५८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

परवाह न कीजिए। और इसलिए रसोई बनानेवाले और खाना परोसनेवालोंके लिए रसोईका काम खत्म हो जानेके बाद कोई काम निर्धारित नहीं किया जाना चाहिए। उन्हें वक्त जरूरतके खयालसे बीच में काफी खाली समय बराबर मिलना चाहिए ।

आप अपने-आपको इस कामके लिए अनुपयुक्त न मानें। जो व्यक्ति समाज के लिए और समाजमें, अर्थात् दूसरोंके साथ रहकर काम करना चाहता है वह चाहे रसोईघरमें काम कर रहा हो या सफाईके काममें लगा हो अथवा बुनाई केन्द्रमें काम कर रहा हो, उसके लिए हर जगह लगभग एक ही तरहके गुण अपेक्षित हैं; और इस पावनकारी आगमें तपे बिना कोई भी व्यक्ति सच्चा मानव नहीं बन सकता । इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप पूरी तरह शान्त और निरुद्विग्न हो जाइए, अपने कामसे सुख और सन्तोष प्राप्त कीजिए और चाहे जैसी कठिन परिस्थिति आ जाये, उसका मुकाबला कीजिए। मैं जानता हूँ कि यह सब कहने में बहुत आसान है, लेकिन करनेमें उतना आसान नहीं है। फिर भी, हमारे सारे ज्ञानार्जनका और हम जो कुछ करें उस सबका उद्देश्य समचित्तताकी स्थितिको प्राप्त करना ही होना चाहिए । इसलिए, मैं आशा करता हूँ कि आप कभी पराजय स्वीकार नहीं करेंगे ।

जब भी इच्छा हो, मुझे पत्र अवश्य लिखिए । बराबर चुस्त शैलीमें लिखनेकी कोशिश कीजिए। लेकिन अगर आप अपनी बात संक्षेपमें न कह सकें तो आपके लम्बे पत्रोंका भी स्वागत ही है। लेकिन आप ऐसा करें कि लम्बा पत्र लिखनेके बाद उसे घटाकर एक चौथाई कर दें और तब देखें कि आप एक चौथाई स्थानमें वही बात कह सकते हैं या नहीं जो आपने अपने लम्बे पत्रमें कही है । यह अभ्यास अच्छा रहेगा ।

हृदयसे आपका,

गिरिराजकिशोर

आश्रम

साबरमती

अंग्रेजी (एस० एन० १४१८०) की फोटो नकलसे ।