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१०५. पत्र : जयरामदास दौलतरामको

कुमार पार्क,बंगलोर

६ जुलाई,१९२७

प्रिय जयरामदास,

अगर तुम कौंसिलके कामसे फुरसत पा सको तो मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है। मालवीयजी और में एक अखिल भारतीय अस्पृश्यता निवारण संघकी स्थापनाकी वांछनीयतापर विचार करते रहे हैं। जमनालाल, राजगोपालाचारी, शंकरलाल, राजेन्द्र बाबू और अन्य लोग भी ऐसा ही सोचते हैं। इस कामको करनेके लिए तुम जैसा कोई दूसरा व्यक्ति उपयुक्त नहीं है । जमनालालजीका विचार है कि मैं तुम्हें हर हालत में आ जानेको कहूँ। वैसा में नहीं कर सकता। लेकिन, मैंने सोचा कि यह बात तुम्हारे सामने अवश्य रख दूँ और अगर तुम्हारी अन्तरात्माको यह स्वीकार हो तो मैं चाहूँगा कि तुम अवश्य आ जाओ। लेकिन, अगर तुम सोचते हो कि कौंसिल में रहकर तुम देशकी सेवाके हित अपनी योग्यताका अधिक अच्छा उपयोग कर सकते हो तो फिर मुझे कुछ नहीं कहना है । बहरहाल, तुम इस बातपर अच्छी तरह विचार करके मुझे बताओ। अगर तुम किसी ऐसे पक्के निष्कर्षपर पहुँचो जिसे तुम मुझे तार द्वारा सूचित कर सको तो तुम तार भी भेज सकते हो ।

हृदयसे तुम्हारा,

श्रीयुत जयरामदास दौलतराम

विधान परिषद् सदस्य

हैदराबाद (सिन्ध )

अंग्रेजी (एस० एन० १४६१९ ) की माइक्रोफिल्मसे ।