पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१६

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आठ

उन्होंने कुमारी मेयो द्वारा अपनी पुस्तक 'मदर इंडिया' में भारतीय जनता और भारतीय संस्कृतिपर किये विद्वेषपूर्ण प्रहारोंकी सम्यक् समालोचना की है। गांधीजी का निश्चित मत था कि कुमारी मेयोको “बस यही सिद्ध करनेकी लगी हुई है कि भारत अपना शासन आप नहीं चला सकता और इसलिए इसपर गोरोंका प्रभुत्व सदा बना रहना चाहिए" (पृष्ठ ५९० ) । इस पुस्तकको उन्होंने "अमेरिकियों और अंग्रेजोंके सामने रखी जाने लायक नहीं" माना, ( क्योंकि इससे उन्हें कोई लाभ नहीं होगा ...) । " किन्तु दूसरी ओर उनका खयाल यह था कि " इसे पढ़कर हर भारतीय कुछ-न-कुछ लाभ उठा सकता है । . . . जिस रूप में हमें दूसरे लोग देखते हैं, हम खुद भी अपनेको उसी रूपमें देखें, यह एक अच्छा गुण है।” (पृष्ठ ५९२-३)

मद्य-निषेधपर लिखे एक लेखमें उन्होंने मद्यपानके मूल कारणका विवेचन करते हुए कहा कि जो लोग " अपने-आपको समाजमें अकेला और उपेक्षित महसूस करते हैं " वही " शराबकी ओर झुकते हैं। जिस प्रकार शराब से दूर रहनेवाले लोगोंके लिए यह कहना ठीक नहीं होगा कि वे स्वभावसे ही सन्त हैं, उसी प्रकार शराब पीनेवालोंके बारेमें भी यह कहना ठीक नहीं होगा कि वे स्वभावसे ही बुरे हैं।" (पृष्ठ ५३०)

अस्पृश्यों और दीन-दुःखी जनोंकी समस्यापर बोलते हुए उनकी वाणीमें जो सहज विदग्धता देखनेको मिलती है, वह उन लोगोंके कष्टोंके प्रति उनके हृदयकी व्यथाकी गहराईकी द्योतक है। उन्होंने सवर्ण लोगोंसे " अपनी श्रेष्ठताका दम्भ त्याग- कर अस्पृश्योंको भाई" माननेको कहा (पृष्ठ ४९०) और ऐशो-इशरतकी जिन्दगी जीनेवालोंको चिथड़ोंमें लिपटी उड़ीसाकी बहनोंकी ओर ध्यान देनेकी सलाह देते हुए कहा : " उन्होंने अपनी सारी शर्म-हया नहीं छोड़ी है, मगर मैं सच कहता हूँ, हमने छोड़ दी है। हम इतने सारे कपड़े पहनकर भी नंगे हैं, उन्होंने कोई कपड़ा न पहन- कर भी अपनेको ढँक रखा है। ( पृष्ठ ४९२ )

इस खण्डमें दिये गये पत्रोंमें से अनेक ऐसे हैं जिनका सम्बन्ध परिवारके अन्दर सत्याग्रहसे है। गांधीजीका पोता कान्ति अपने पिता हरिलाल गांधीसे मिलना चाहता था । इसपर उन्होंने उसे लिखा : " वर्तमान स्थिति में तुम्हारा कर्त्तव्य क्या है, इसे समझने का प्रयत्न करना और उसका अनुसरण करते हुए दृढ़ता तथा हिम्मतसे काम लेना । तुम्हें क्या माता है, उसका खयाल न करके सिर्फ इसी बातपर विचार करो कि तुम्हें क्या करना चाहिए। यह पत्र तुम जिन लोगोंको दिखाना चाहो, उन्हें दिखा देना । (पृष्ठ २१ )"

जब रेहाना तैयबजीने अपनी माँ द्वारा बहुत अधिक " समय लगाकर " बड़े "प्यारसे तैयार" की गई पोशाक छोड़नेका निश्चय किया तो गांधीजी ने उनसे सहमति प्रकट की, यद्यपि स्वयं रेहाना तैयबजी ने उन्हें सूचित किया था कि माँकी भावनाका खयाल करके यह निश्चय करते हुए उन्हें दुःख हुआ था । गांधीजी का सुझाव यह था कि " जब माताजी को विश्वास हो जाये कि तुम अब उन चीजोंको अपने लिए कभी नहीं चाहोगी" तब वे सब अपनी छोटी बहनको दे देना ( पृष्ठ ३० ) । लेकिन साथ ही गांधीजी ने उनसे यह समझने को भी कहा कि माता-पिता चाहे लाख उदार- मना हों, जब उनका वयस्क बच्चा भी अपने सैद्धान्तिक अधिकारोंको कार्यरूप देना