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पत्र : लिलियन एडगरको

आ जाता है । सूत निकालना और तकुएका घूमना साथ-साथ चलता है, जिससे लगातार ठीकसे सूत निकालते जानेमें कोई कठिनाई नहीं होती । और जब सूत निकाला जा रद्दा होता है, उस समय पुनीको अँगुलियोंके बीच इतना दबाकर रखते हैं जिससे बट सुतके उस छोरतक नहीं पहुँच पाता जिसे हम अँगुलियोंसे पकड़े होते हैं ।

२. माल अर्थात् उस डोरीपर कभी-कभी मोम लगाना पड़ता है जो चरखेके चक्र और तकुएपर चढ़ी रहती है ।

३. तेलका उपयोग ज्यादा नहीं करना है। मशीनोंमें दिये जानेवाले साधारण तेलसे काम चल सकता है। लेकिन, अगर वह सुलभ न हो तो खाना पकानेके तेलसे भी काम ठीक निकल जाता है । धुरीमें, जहाँ वह खम्भों को छूती है, और हत्थों में, जिनपर तकुआ टिका रहता है, कभी-कभी दो-चार बूंद तेल डाल देनेसे चरखा ठीक चलता है।

४. घंटा-भर कात लेनेके बाद उस सूतको तकुए परसे उतार देना अच्छा रहेगा । जो लोग तेजीसे काल सकते हैं, वे तो हर बीस मिनट बाद ही सूतको तकुए परसे उतार लेते हैं । जब सूतको उतारते समय वह उलझ जाये तो समझना चाहिए कि तकुएपर सूत कसकर नहीं लपेटा गया है। अगर आपका सूत ठीक तरहसे बटा हुआ हो तो आप उसे हर बार तकुएपर काफी कसकर लपेट सकती हैं और उसे ऐसा लपेटना चाहिए जिससे कुकड़ी छूनेमें मुलायम नहीं, बल्कि सख्त जाने पड़े।

५. जब डोरी टूट जाये और आप अपने काते सुतसे डोरी न बट सकें तो आप उसी डोरीके बराबर कोई भी मोटी डोरी बाजारसे खरीदकर उसका उपयोग कर सकती हैं।

और अन्तमें, अगर आप कताई कलामें प्रवीण होना चाहती हैं और यज्ञ भावसे कातना चाहती हैं तो यह आवश्यक है कि किसी अच्छे कातनेवालेको कातते हुए देखें । आप जहाँ भी हों - काशीमें हों या दरभंगामें कहीं भी आपको ठीक ढंगकी सहायता पाने में कोई कठिनाई नहीं होगी ।

आपके प्रयत्न के लिए पूर्ण सफलताकी कामना करता हुआ,

हृदयसे आपका,

कुमारी लिलियन एडगर

मार्फत पोस्ट मास्टर

श्रीनगर (कश्मीर)

अंग्रेजी (एस० एन० १९७८५ ) की माइक्रोफिल्मसे ।