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१०८. एक पत्र

[७ जुलाई, १९२७के पूर्व][१]


आपके प्रश्न तो बहुत ही अच्छे हैं, परंतु 'नवजीवन' और 'यं० इं० ' पढ़ने- वालोंमें अधिक वर्ग ऐसा नहीं है जो इस प्रश्नका धार्मिक संशोधन करनेके लीये उत्सुक हो। इसलिये आपको ही उत्तर देकर मैं संतुष्ट रहुंगा ।

सर जगदीश बोसके विचार कोई नई वस्तु नहीं है । हमारे शास्त्रोंमें भी वनस्पतीमें उसी प्रकारका जीवकी हस्तीको माना है जैसो मनुष्य में है । इसलिये 'जीवो जीवस्य जीवनं ' यह प्रमाणसिद्ध कथन है उसमें कोई शंका नहीं है । और यही एक कारण है जिससे शरीर आत्माके लिये उपाधि रूप माना गया है और आत्माकी उच्चतम स्थिति में शरीरका अभाव आवश्यक माना गया है । यद्यपि प्रत्येक जीव किसी न किसी प्रकारकी हिंसापर ही शरीरको धारण कर सकता है, तदपि किस प्रकारका जीव उसके लिये खाद्य है यह प्रश्न उपस्थित होता है । मनुष्य शरीरकी रचना और ज्ञानीओंका अनुभव बताता है के वनपक्व फलादि ही उसका सच्चा आहार है । शुद्ध मुमुक्षु अग्नि का उपयोग भी नहीं करेगा। इस आदर्श स्थितिको हम न पहुंचे तो भी यथाशक्ति प्रयत्न करना हमारा कर्त्तव्य है, और इस प्रयत्न में मांसको किसी जगह स्थान न हो सकता है। वनस्पति जीव हमारे लिये पर्याप्त होना चाहिये ।

२. मैं निजी और दूसरोंके अनुभवसे यह कह सकता हूं कि निरामिष भोजन से इंग्लैंड ऐसे प्रदेशमें मनुष्यको क्षयादि रोगोंका कुछ भी डर नहीं है। हजारों अंग्रेज आज निरामिषाहारी हैं । वे लोग प्राय: अंडा अवश्य खाते हैं ।

३. निरामिष भोजनगृहमें अंडे और दूधका उपयोग होता है। वहां किसी जगह पर मांस मिल ही न सकता है न पक सकता है । यह लोग अंडे और दूधको एक ही पंक्ति में रखते हैं और वे मानते हैं कि दूध और अंडेका त्याग किया जाय तो वह अच्छी बात है क्योंकि वह वनस्पति हरगीज़ नहीं है । मेरा भी यह अभिप्राय है । मनुष्यके लिये बचपन में माताका दूधको छोड़कर और कोई दूध लेनेका अधिकार नहीं है । इस बारेमें मुझको 'यं० इं०' में भी कुछ न कुछ लिखना होगा - आत्मकथाके ही प्रसंग में उसे आप देखेंगे। आज तक मेरा मंतव्य था कि प्रत्येक अंडेमें मुरघीकी उत्पत्ति का संभव है ही है। अब मुझको ठीक पता चला है कि मुरघेको मिलनेके सीवा भी मुरघी अंडा देती है और उसमें से मुरघा या मुरघी पैदा ही नहीं हो सकते हैं। वह अंडा उतना ही निर्जीव और निर्दोष है जितना दूध । जब मैं सोच रहा हूं कि निरा- मिषाहारमें जबतक दूधको कुछ - स्थान है तबतक अंडेको है या नहीं। इतना तो मैं

  1. आत्मकथा (भाग ४, अध्याय ८) में दूधके बारेमें जो विचार व्यक्त किये गये हैं उसके उल्लेखके आधार पर यह तारीख निर्धारित की गई है। उक्त अंश यंग इंडियाके ७-७-१९२७ के अंक में प्रकाशित हुआ था ।