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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जानता हूं कि ब्रह्मचर्यकी दृष्टिसे अंडा त्याज्य वस्तु है जिस तरह से बहुत सी वनस्पति भी है। परंतु यह विषयान्तर हुआ । आज तो में अंडेका ख्याल केवल निरामिषाहारकी दृष्टिसे कर रहा हूं ।

आपका,

आपने पत्र हिंदी में लिखा उसके लिये आपको धन्यवाद देता हूं ।

एस० एन० १२३२५ की फोटो- नकलसे ।

१०९. टिप्पणियाँ

दार्जिलिंग में देशबन्धु-दिवस

दार्जिलिंगसे श्रीमती ब्लेयरके लिखे निम्न अनुच्छेदको पढ़कर पाठकोंको खुशी होगी :

शायद यह जानकारी आपके लिए दिलचस्प हो कि दार्जिलिंग महिला समितिने स्वर्गीय श्री चि० रं० दासको स्मृतिमें १५ जूनको एक सभा की, जिसमें श्रीमती उर्मिलादेवीने भाषण दिया । भाषण खादी पहनने और अपने देश के गरीब लोगों की सहायता करने के इच्छुक लोगों के प्रतिदिन कमसे कम आधे घंटेतक सूत कातनेके दायित्वपर दिया गया। उसके बादके बुधवारको, अर्थात् गत २२ तारीखको, समितिकी नौ सदस्याओंने श्रीमती उर्मिला देवीके समक्ष प्रतिदिन कमसे कम आधे घंटे तक सूत कातनको प्रतिज्ञा की। आगे चल- कर वे शायद अपने-आपको अखिल भारतीय चरखा संघकी सदस्या बननेके लायक पायें। इस समय वे ऊन बुनेंगी, ताकि वे शिशु-चिकित्सालय और अस्प- तालको सदियोंके लिए गरम कपड़े दे सकें ।[१]

यह बहुत अच्छी बात है कि दार्जिलिंगकी महिलाओंने श्रीमती ब्लेयर द्वारा वर्णित ढंगसे देशबन्धु-दिवस मनाया। मुझे उम्मीद है कि जिन नौ महिलाओंने अपने नाम दिये हैं, वे अपना प्रयत्न निर्बाध रूपसे जारी रखेंगी। इस देशमें लोगोंकी यह आदत है कि वे उत्साह के अतिरेकमें वादे कर बैठते हैं, फिर कुछ समयतक उनको निभाते हैं और फिर कुछ दिन बाद वे उन्हें बिलकुल भूल जाते हैं। मैं आशा करता हूँ कि जबतक एक भी भारतीय पुरुष अथवा स्त्रीको अपने घरमें काम न मिलनेके कारण भूखा रहना पड़ता है तबतक ये सदस्याएँ यज्ञके भावसे सूत कातना जारी रखनेके लिए पर्याप्त दृढ़ताका परि- चय देती रहेंगी। सभी जानते हैं कि लोगों में ऐसा कहनेका चलन सा हो गया है कि अगर उनके पास काम नहीं है तो वे अपना घर छोड़कर कहीं और क्यों नहीं जा सकते, वे बागानोंमें क्यों नहीं चले जाते, वे नगरोंमें क्यों नहीं चले जाते, जहाँ श्रमिकोंकी इतनी माँग है और जहाँ वे आठ-आठ आनेतक रोज कमा सकते हैं। इन पृष्ठों में

  1. श्रीमती ब्लेयर के इस पत्रके उत्तरके लिए देखिए " पत्र : श्रीमती ब्ळेथरको", २८-६-१९२७ ।