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मैंने इस दलीलका खोखलापन कई बार समझाया है। करोड़ों लोग अगर चाहें तो भी अपने घर-बार नहीं छोड़ सकते । और अगर वे सब ऐसा करें तो यह बहुत बुरी बात होगी । न्यूकैसलमें कोयलेकी खानपर ही पहुँचकर कोई कोयला लेना चाहे तो वह शायद उसे मुफ्त ही मिल जाये या बहुत थोड़े पैसे में मिल जाये। लेकिन, बम्बई में ऐसा नहीं हो सकता । अगर बम्बईको न्यूकैसल के कोयलेका उपयोग करना ही हो तो उसे यातायातका खर्च उठाना पड़ेगा । इसी तरह बम्बई में रोजगार मिलना उन करोड़ों लोगों के लिए किसी कामका नहीं हो सकता जो न अपने घर-बार और खेत-खलिहान छोड़ सकते हैं, न छोड़ेंगे और न जिन्हें छोड़ने ही चाहिए। इसलिए रोजगारको उनके घरोंतक पहुँचाना है । और जिस प्रकार न्यूकैसलमें कोयला मुफ्त या सस्ता मिलेगा उसी प्रकार उनके घरोंतक पहुँचाया जानेवाला रोजगार पैसेकी दृष्टिसे देखनेपर बम्बई में मिलनेवाले रोजगारकी अपेक्षा कम लाभदायक है; लेकिन, अगर हम मानसिक सन्तोष, अन्न और सागसब्जीकी दृष्टिसे देखें तो घरोंमें मिलनेवाला काम बम्बई में मिलनेवाले कामसे बहुत अधिक लाभदायक है ।

आदि कर्नाटक

'यंग इंडिया' के सभी पाठकोंको शायद यह बात मालूम न हो कि आदि कर्नाटक कौन हैं। वे कर्नाटकके दलित वर्गोंके लोग हैं। जिस प्रकार रानीपरज परिषद में रानीपरज लोगों के हितैषियोंने कालीपरजके स्थानपर अधिक उपयुक्त नाम रानी- परज रखा, उसी प्रकार सारे भारतके दलित वर्गोंके लोग स्वभावतः अपनी-अपनी जातियोंके नाम बदलकर ऐसे नाम रख रहे हैं, जिनसे किसी प्रकारकी हीनताकी गंध नहीं आती। इसी भावनासे कर्नाटकके दलित वर्गोंके लोग अपने-आपको आदि कर्नाटक कहते हैं । और इसलिए मैं इसी शीर्षकके अन्तर्गत प्रतिनिधि सभामें मैसूर के दीवान द्वारा दिये गये भाषणके दो अनुच्छेदोंकी चर्चाकर रहा हूँ । इस अनुच्छेदों में बताया गया है :

इन वर्गोंके लोगोंकी शिक्षाके लिए विशेष सुविधाएँ दी गई हैं और ऐसे तरीके अपनाये गये हैं जो उनकी विशेष परिस्थितियोंके उपयुक्त हैं। इन तरीकों- में छात्रवृत्तियोंकी व्यवस्था, शिक्षा-शुल्कसे छूट, कपड़े और पढ़ने-लिखनेके लिए जरूरी चीजें मुफ्त देना, निःशुल्क छात्रावास आदि शामिल हैं। उन्हें सभी स्कूलोंमें दाखिल होनेका अधिकार तो दिया हो गया है, साथ ही विशेष रूप से उन्होंके लिए ६०५ स्कूलोंकी व्यवस्था की गई है। कुल मिलाकर इस वर्ग के १६,५७५ विद्यार्थी मंसूरमें शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं ।

एक सहकारी कृषि योजना भी चालू करनेकी कोशिश की जा रही है, जिसमें भूमि, मवेशी और उचित निर्देशन, सबकी व्यवस्था रहेगी।

इन अनुच्छेदोंके अन्तमें यह सुझाव दिया गया है :

ये लोग हमारी शक्तिके स्रोत हो सकते हैं। तब क्या हम उन्हें अपनी कमजोरीका कारण बनने देंगे ? अन्यायकी भावना उनके हृदयको सालती रहती है; उसे सिर्फ प्रेम और दयाका व्यवहार ही दूर कर सकता है । हमारा लक्ष्य

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