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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

उन्हें अधिकाधिक ' हिन्दू बनाने' का होना चाहिए, क्योंकि वे हिन्दू समाजके ही अंग हैं। वे इस समाजके सदस्य बने रहें, इस उद्देश्यसे हमें उनको हर तरह- की सुविधा देनी चाहिए। अगर हम ऐसा करें तो वे हमारे समाजको शक्तिमें भारी वृद्धि करेंगे; अगर हम उन्हें ऐसा करने की सुविधा नहीं देंगे तो वे उसी प्रमाणमें हमारे समाजकी शक्ति को कम करेंगे। अगर वे हमसे अलग हो गये तो हमारे समाजमें जातीय भिन्नताका एक अतिरिक्त तत्त्व प्रवेश कर जायेगा, जिससे प्रशासनकी समस्याएँ, जो पहलेसे ही बहुत कठिन हैं, और भी उलझ जायेंगी । उनकी स्थिति सुधारने के लिए हर सम्भव उपायसे काम लेना चाहिए, और हिन्दू समाजके हरएक हितैषीको, मैसूरसे प्रेम रखनेवाले हर व्यक्तिको अपनी पूरी शक्ति से इस दिशा में सरकार द्वारा किये जानेवाले प्रयत्नोंमें योग देना चाहिए। यह सुझाव ईसाई तथा मुसलमान धर्म प्रचारकोंके लिए इस बातकी एक नरम ढंगकी चेतावनी भी है कि वे इन दलित वर्गोंको हिन्दू धर्मसे विमुख करके अपने-अपने धर्मो में लानेकी कोशिश न करें। लेकिन अगर वे इस मामलेमें हस्तक्षेप करना ही चाहते हैं तो वे इस तरह हस्तक्षेप करें, ऐसा काम करें जिससे ये लोग अधिक अच्छे हिन्दू बन सकें। अगर सम्बन्धित पक्ष इस सुझाव के अनुसार आचरण करते हैं तो यह इस देशमें सच्ची शान्तिकी स्थापनाकी दिशामें ठोस योगदान होगा ।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ७-७-१९२७

११०.मैसूरमें गोरक्षा

मैसूरकी गो-रक्षा समितियोंकी ओरसे मुझे कई पत्र मिले हैं, जिनमें राज्य द्वारा नियुक्त मैसूर गो-रक्षा कमेटीको लिखे मेरे पत्रका[१] विरोध किया गया है। मैंने वह पत्र कमेटी द्वारा भेजी एक प्रश्नावलीके उत्तरमें भेजा था । मद्रासके अखबारोंमें छपे उसके अंशोंको पढ़कर इन गो-रक्षा समितियोंने ऐसा मान लिया कि मैं किसी भी परिस्थिति में गो-हत्यापर कानूनी पाबन्दी लगाने के बिलकुल खिलाफ हूँ । इन पत्रोंको पढ़कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ और मैंने मनमें सोचा कि भूल या असावधानीसे में क्या कभी ऐसी कोई बात कह गया हूँ कि गोहत्या के खिलाफ कभी कोई कानून बनना ही नहीं चाहिए। इसलिए मैंने गो-रक्षा कमेटीसे अपने पत्रको एक प्रति भेजनेको कहा और समितिने कृपापूर्वक वह प्रति भेज दी है। चूंकि इस पत्र में मैंने अपना सुविचारित मत व्यक्त किया है और चूंकि इसके कारण इस अत्यन्त महत्त्वपूर्ण सवाल में दिलचस्पी रखनेवाले मैसूरके लोगोंके बीच गलतफहमी पैदा हो गई है, इसलिए इसे मैं नीचे पूराका पूरा उद्धृत कर रहा हूँ ।[२]

  1. देखिए खण्ड ३२, पृष्ठ ५४३-४४ ।
  2. यहाँ नहीं दिया जा रहा है।