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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कदम है जिनकी अवस्था आज भारतके पशुओंके ही समान दयनीय हो गई है। भारत- के देशी राज्य, निस्सन्देह, अन्य अनेक मामलोंकी तरह इस मामले में भी शेष भारतका दिशा-दर्शन कर सकते हैं । और इन राज्योंमें भी शुभारम्भ करनेकी दृष्टिसे कोई राज्य मैसूरसे अधिक उपयुक्त और अधिक समर्थ नहीं है । मैंने जहाँतक देखा-जाना है, उसके अनुसार यहाँके महाराजा काफी लोकप्रिय हैं, जनमत प्रबुद्ध है, हिन्दू-मुस्लिम समस्या यहाँ नहीं है और दीवान साहबका रुख काफी सहानुभूतिपूर्ण है । मैसूरमें दुग्ध व्यवसाय के लिए इम्पीरियल इंस्टिट्यूट और पशुपालन केन्द्र भी हैं और श्री विलियम स्मिथ, जो इम्पीरियल डेरीके विशेषज्ञ हैं, बंगलोर में ही रहते हैं। इस तरह इस राज्यको एक रचनात्मक नीति विकसित करने के सभी आवश्यक साधन उपलब्ध हैं । और इन खूबियों में यह तथ्य भी जोड़ दीजिए कि प्रकृतिने मैसूरको सुन्दर जलवायुका वरदान दे रखा है । किसी हिन्दू राजाको जो विरुद सबसे प्यारा होता है वह है गो-ब्राह्मण-रक्षक होना। गायका मतलब सिर्फ एक ऐसा पशु ही नहीं है जिससे भारतको दूध और अन्य असंख्य लाभ मिलते हैं, बल्कि उसका मतलब एक असहाय, अत्याचार पीड़ित और निरीह प्राणी भी है। ब्राह्मणका मतलब ईश्वरीय ज्ञान और अनुभवकी प्रतिमूर्ति होता है । लेकिन अफसोस ! आज हिन्दू राजा इन्हें पूरा संरक्षण देनेमें असमर्थ हैं और कई तो अगर अनिच्छुक नहीं तो इस ओरसे उदासीन भी हैं। जबतक ये राज्य और इनके प्रजाजन समग्र जनताकी भलाईके लिए एक-दूसरेके साथ सहयोग करके पशुओंकी वंश - वृद्धि, दुग्ध आपूर्ति और मृत पशुओंको ठिकाने लगानेकी व्यवस्थाका नियन्त्रण और नियमन नहीं करेंगे तबतक तो गो-हत्या के खिलाफ चाहे जितने कानून बनाये जायें, उन सबके बावजूद भारतमें पशुओंकी वंश-वृद्धि कसाइयोंके हाथों अकाल मृत्युका ग्रास बनने के लिए ही होगी । जब भारतके पुरुषों और स्त्रियोंको जगन्नियन्ता के सामने न्यायके लिए खड़ा होना होगा उस समय इस बहानेको स्वीकार नहीं किया जायेगा कि वे प्रकृति- के नियमसे अनभिज्ञ थे ।

जब मुझे गो-रक्षा समिति के सदस्योंने बताया कि बंगलोर और मैसूरमें मारी गई गायोका मांस राज्यके चिड़ियाघरोंके जानवरोंको खिलाया जाता है; यहाँ गोमांस दूसरे किसी भी जानवरके मांससे बहुत सस्ता है और आदि कर्नाटक लोग, जो अपने-आपको हिन्दू कहते हैं और हिन्दू माने भी जाते हैं तथा जिन्हें 'रामायण' और 'महाभारत'का उतना ही ज्ञान है जितना किसी अन्य हिन्दूको, गोमांस खानेके आदी हैं तो मैं स्तम्भित रह गया। अगर यह सब सच है तो इस दुरवस्थाको जिम्मेदारी उन हिन्दुओंकी है। जिनकी स्थिति हर दृष्टिसे अच्छी है । अगर आदि कर्नाटक लोग गायकी पवित्रताको स्वीकार नहीं करते तो इसका कारण यह है कि वे अज्ञानके अन्धकारमें पड़े हुए हैं। लेकिन उन हिन्दुओंके लिए क्या कहा जाये, जिन्होंने अपने भाइयोंकी ऐसी जघन्य उपेक्षा की है कि उन्हें हिन्दू धर्मके मूल तत्त्वोंसे भी अवगत करानेकी चिन्ता नहीं की ?

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ७-७-१९२७