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पत्र: हेनरी एस० एल० पोलकको

यदि तुम ऐसा करोगे तो मैं उसे बुरा नहीं मानूंगा । यदि कांग्रेसकी सम्मति तुम्हें मिल जाती है तो उससे मुझे दुःख नहीं होगा बल्कि मैं तुम्हें बधाई दूंगा । हाँ, यह चेतावनी जरूर देता हूँ कि जो भी तुम करो उसके पहले इस बातका निश्चय कर लो कि तुमने मेरे विचारोंको ठीक-ठीक समझा है या नहीं । तुम्हारे दूसरे प्रश्नोंका उत्तर इस प्रकार है :

१. नागपुर सत्याग्रहकी बिन-माँगी टीका करना मेरा धर्म नहीं था ।

२. भाई आवारीने' मेरी सम्मतिके विषयमें जो कुछ लिखा था उसका खण्डन करने के सिवा और कुछ कहना मुझे उचित नहीं लगा ।

३. भाई आवारीसे मुझे किन बातोंके बारेमें पूछना चाहिए था, यह मैं नहीं समझ सका ।

४. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीमें जो प्रस्ताव पेश हुए उनके लिए तुम मुझे उत्तरदायी कैसे ठहराते हो ? मैंने तो उनमें कोई भाग नहीं लिया था । यह ठीक है कि मुझे कार्यसमितिका सदस्य माना जाता है किन्तु मेरी शर्त यह है कि कमेटीकी बैठक में मेरी उपस्थितिकी आशा न रखी जाये। हाँ, तुम यह पूछ सकते हो कि जब में उपस्थित नहीं रह सकता तो कमेटीकी सदस्यता क्योंकर स्वीकार करता हूँ । यदि तुम ऐसा पूछो तो मुझे स्वीकार करना चाहिए कि मैं अपना बचाव नहीं कर सकता अथवा ऐसा कहो कि यदि इसका कोई बचाव हो सकता है तो वह बचाव अध्यक्ष महोदय ही कर सकते हैं।

५.समय ही दे सकता संकटके अवसरपर इसके सिवा, मान अब तुम्हारी समझमें आ गया होगा कि वल्लभभाईको चुननेमें मेरा कोई हाथ नहीं था बल्कि वल्लभभाईने मुझसे कहा था कि स्वयं उनका जानेका कोई विचार नहीं था । किन्तु वे कमेटीके आग्रहकी अवज्ञा नहीं कर सके । वल्लभभाई मेरे सिद्धा- न्तोंको समझनेका जितना दावा करते हैं, उन्हें समझनेका उतना ही दावा क्या तुम नहीं करते ? किन्तु इन दोनों दावेदारोंमें से किसका दावा ज्यादा प्रबल है इसका निर्णय तो, यदि ऐसा निर्णय देनेकी मेरी इच्छा हो तो, मैं मरते हूँ । कारण, में आज यह कैसे कह सकता हूँ कि किसी विशेष वल्लभभाई या तुम मेरे विचारोंको किस हदतक जान सकोगे? लो कि मैं स्वयं कमेटीकी बैठक में उपस्थित होता और शस्त्रोंके उपयोगके विरुद्ध होता फिर भी यदि कमेटी मुझसे आग्रह करती और उसके आग्रहपर में नागपुर चला जाता तो इसमें में कोई असंगतिका दोष नहीं देखता । में वहाँ जाता, अपने विचार समझाता और तथ्योंको समझकर रिपोर्ट पेश कर देता । यदि कोई मेरी बुद्धिको यह समझा सकता है कि सत्याग्रहमें शस्त्र धारण करनेकी बात आ सकती है तो क्या मैं उसे अपनेको समझानेका मौका न दूँ ? जाँच-पड़ताल किये बिना पहलेसे ही निर्णय कैसे दिया जा सकता है ? तब शायद तुम मुझसे यह पूछोगे कि मैंने तुम्हें वह पहला पत्र क्यों लिखा था । यदि तुम ऐसा पूछो तो मैं तुम्हें यह उत्तर दूँगा कि मित्रोंमें इस तरह विचारोंका आदान-प्रदान होना दुनियाकी एक रीति है और विचारोंके १. मंचरशा आवारी ।