पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 34.pdf/१८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रकृतिके किसी-न-किसी अज्ञात नियमका उल्लंघन करनेका परिणाम है और हम उसके नियमोंको जाननेका प्रयत्न करें तथा ईश्वरसे उनका पालन करनेकी शक्ति देनेकी प्रार्थना करें। अतएव जब हम बीमार होते हैं उस समय हृदयसे प्रार्थना करना, कर्म और ओषधि दोनोंका काम करता है ।

कल फिर मुझे बहुत काम करना पड़ा और सारा भार बहुत अच्छी तरह, पिछले रविवारसे भी अच्छी तरह, बर्दाश्त कर गया। मुझे तुमसे हिन्दी पत्र प्राप्त करनेकी कोई जल्दी नहीं है ।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू ० ५२४७ ) से ।

सौजन्य : मीराबहन

११९. पत्र : एन० आर० मलकानीको

९ जुलाई ,१९२७

प्रिय मलकानी,

तुम्हारा पत्र मिला । टूटी हुई बोतलको किसी तरह जोड़ा तो जा सकता है, किन्तु उसके मालिकने उसके विषयमें यह जो धारणा रखी थी कि वह अटूट है वह यश तो उसे वापिस नहीं मिल सकता। तुम्हारे पतनसे[१] मुझे जो आघात पहुँचा है, उसे मैं अभीतक भुला नहीं पाया हूँ । तुम नहीं जानते कि मुझे तुमपर कितना विश्वास था । तुम मेरे उन चन्द सहयोगियोंमें से एक थे, जिनके बारेमें मैं सोचता हूँ कि वे कभी टूट नहीं सकते ।

लेकिन मुझे बीती बातोंको भूल जाना चाहिए। मैं कोशिश करूँगा । तुम्हें महा- विद्यालय में वापस आना चाहिए अथवा नहीं, सो में नहीं जानता। इसका निर्णय कृप- लानीपर ही छोड़ दो। यह आघात इतना तीव्र था कि में स्तम्भित रह गया और मैंने कृपलानी अथवा नानाभाईको[२] कुछ भी लिखना उचित नहीं समझा, न उन्होंने ही मुझसे कुछ कहा ।

लेकिन यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि अब तुम्हें थडानीको काफी पहलेसे ही सूचना दिये बिना सिन्ध नहीं छोड़ना चाहिए। तुम्हारा पश्चात्ताप शुभ और उचित है । तथापि अभी जल्दीमें कुछ करनेकी जरूरत नहीं है। मेरे साथ सम्पर्क बनाये रहना । तुम अपने पश्चात्तापका अपनी पत्नी और साससे जिक्र करना। उन्हें भी महसूस करने दो कि वापसीका क्या मतलब है ।

  1. देखिए " पत्र : एन० आर० मलकानीको ", २६-६-१९२७।
  2. नृसिंहप्रसाद ( नानाभाई ) कालिदास भट्ट, जो उस समय गुजरात विद्यापीठके कुलनायक ' ये ।